‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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आजादी की दूसरी लड़ाई… तैयार हो भाई !!!

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आजादी की दूसरी लड़ाई… तैयार हो भाई !!!

अजादी की दूसरी लड़ाई लड़ी जा रही है । यह लड़ाई अब उन अपनों से है जिन्हें हमने भरोसे के साथ सत्ता पर बिठाया । इस भरोसे के साथ कि भारत को सोने की चिड़िया माना गया , तुम सब इसकी हिफ़ाजत करना , इसे स्वस्थ - तंदरुस्त - मजबूत रखना और आगे बढ़ाते रहना । लेकिन हमारे अपनों ने हमसे ही बेईमानी की , सोने की चिड़िया को सम्हालना छोड़ उसके सारे पंख ही भ्रष्टाचार की हमलावर - आक्रामक ऊंगलियों से नोच डाले । बेहद शर्मनाक काम किया , इतना ही नहीं इससे भी ज्यादा शर्मनाक काम तो वह किया कि देश की जनता को "बाहरी लोग" कह डाला प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने । अर्थात सत्ता और उस बैठे नेता-अफ़सर अंदर के शेष देश बाहरी हो गया , ऐसी घिनौनी सोच तो अंग्रेजों की भी नहीं थी , जो विशुद्ध रूप से लूटने ही आये थे भारत को ! समय है एक जुट हो कर हम सब को , सारे देश को सड़क पर उतर कर भ्रट आचरण करने वालों को नेस्तनाबूत करने की । अपने देश को बचाने की । अन्ना हजारे एक ऐसे अखण्ड दीप क नाम है जो एक पवित्र उद्देश्य के लिए प्रज्जवलित हुआ है  एक - एक दीप हमें भी बनना होगा तभी मिटेगा हमारे घर का अंधियारा , और तभी जगमगा उठेगा हमारा घर । लेकिन हमें अपने अपने घरों - दफ़्तरों - दुकानों से निकल कर सड़क पर आना होगा - आंदोलन में अपनी जीवंत भूमिका का निर्वाह कर होगा । यह ज्यादा जरूरी है । जय हिन्द - जय भारत ।
- आशुतोष मिश्र , रायपुर , छत्तीसगढ़ । संपर्क - 094242 02729.
 
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'शहीद स्मारक' की सार्थकता पर प्रश्नचिन्ह : एक अच्छी लेकिन चिंताजनक खबर " देशबन्धु " से

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रायपुर  जी ई रोड पर स्थित शहीद स्मारक भवन का भव्य निर्माण एक बड़ी उपलब्धि है। निर्माण समिति से जुड़े कार्यकारिणी निश्चित रूप से बधाई के पात्र तो हैं ही, विडम्बना यह है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रदेश सेनानियों को समर्पित इस भवन की सार्थकता का अब कोई मायने नहीं रह गया है।
13 अगस्त वर्ष 03 में अखिल भारतीय फ्रीडम फाइटर्स फेडरेशन के अध्यक्ष शशिभूषण वाजपेयी के मुख्य आतिथ्य में एवं छग प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की अध्यक्षता तथा सांसद पं. श्यामाचरण शुक्ल के विशेष आतिथ्य में स्मारक भवन का शुभार्पण हुआ था, तब सेनानियों ने यह कभी नहीं सोचा होगा कि उन्हें अवसर पाते ही नेपथ्य में ढकेल दिए जायेंगे वे अपनी उपेक्षा को तो सहते आ रहे हैं, लेकिन स्मारक की दुर्दशा और अव्यवस्था पर उन्हें कड़ा एतराज है। शहीद स्मारक भवन का प्रबंधन जब से निगम के हाथों गया है, आय का स्रोत तो बढ़ा ही है, लेकिन आय स्रोत का एक धेला भी सेनानी समिति के फंड में नहीं जाता। वहीं भवन का रखरखाव भगवान मालिक है। चारों तरफ फैली गंदगी शाम होते ही असमाजिक तत्वों का डेरा अव्यवस्थित पार्किंग यहां तक कि संडास और मूत्रालय भी गंदगी और बदबू से भरे होते हैं। इस गुंबजनुमा सभागार एवं भवन काम्पलेक्स में रंग-रोगन नहीं हुए, सालों बीत गए। गौरतलब है कि इस भवन का निर्माण जिला प्रशासन, नगर पालिक निगम एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की मदद से किया गया था। उस समय निर्माण समिति में स्व. कमल नारायण शर्मा, स्व. हरि ठाकुर, स्व. नारायण राव अंबिलकर, स्व. नारायण दास राठौर, धनीराम वर्मा, मोतीलाल त्रिपाठी, रणवीर सिंह शास्त्री जैसे सेनानियों के नेतृत्व का उल्लेखनीय योगदान रहा है।
जिस फ्रीडम फाइटर्स के नेतृत्व में शहीद स्मारक भवन में वर्षभर की गतिविधियों को संचालित कराया जाना था, वह आज दूर की कौड़ी हो गई है। राजधानी में गिनती के बचे-खुचे वयोवृध्द स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को आवश्यक बैठकें लेनी हो तो उन्हें कई सीढ़ियां पार करके सबसे ऊपर कोने के भवन में ढकेल दी जाती है। बताईये जिस भवन पर उनका पूरा अधिकार मिलना चाहिए था वहां उनका अपना कोई बैठक कक्ष भी नहीं है। इतने बड़े भवन में लिफ्ट की व्यवस्था तो दूर शिफ्ट की व्यवस्था भी नहीं है, जो एक उम्रदराज बुजुर्ग के लिए जरूरी होता है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्राय: स्वाभिमानी होते हैं, वे स्वयं आपस में चंदा इकट्ठा कर बैठकें एवं किसी कार्यक्रम को अंजाम देते रहे हैं, लेकिन क्या शासन-प्रशासन कार् कत्तव्य नहीं बनता कि प्रदेश के स्वतंत्रता सेनानी संगठन को आर्थिक रूप से सक्षमता प्रदान की जाए, ताकि वे वर्षभर की गतिविधियों को स्वतंत्र रूप से संचालित कर सकें। ऐसा नहीं है कि जिला और निगम प्रशासन को शहीद स्मारक भवन से मिलने वाली आय-व्यय के स्रोत में कमी हो प्रतिदिन का हिसाब ही देखें तो सभागार का एक दिन का किराया 8 से 12 हजार, विद्युत व्यय 2 हजार रुपये, सफाई व्यवस्था 500 रुपये, कमरा आबंटन के लिए अमानत राशि दस हजार रुपये, म्यूजियम आर्ट गैलरी का प्रतिभाग का किराया 5 हजार रुपये, इसके अलावा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से मिलने वाला नियमित किराया तो अलग, बावजूद इसके स्वंतत्रता संग्राम सेनानियों के संस्था को फूटी कौड़ी नहीं मिलती। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की स्मृति शिलालेख कक्ष तो है लेकिन कहीं किसी दीवार पर किसी एक की भी छायाचित्र आप टंगे हुए नहीं पायेंगे।
स्मारक भवन को पूर्णरूपेण कम्प्युनिटी हॉल जैसे बना देना चिंता का विषय है। लायब्रेरी में देशभक्ति पूर्ण प्रेरणास्पद पुस्तकें हो तो बेहतर होगा। हमारे संगठन को भवन से मिलने वाली आय स्रोत का एक अंश नहीं मिलता। बैठकें लेनी हों तो आपस में खर्चे का जुगाड़ कर लेते हैं।         (साभार : देशबन्धु , रायपुर)
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बढ़ी मानव तस्करी ;छत्तीसगढ़ बना एक बड़ा बाजार

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पत्रिका के रायपुर संस्करण ने अपने सोमवार 06 दिसम्बर 2010 के अंक में संजीत कुमार की चौंकाने वाली खबर प्रकाशित की है , यह खबर शर्मनाक और चिंताजनक भी है । पत्रिका बताता है कि महिलाओं की तस्करी करने वालों के लिए छत्तीसगढ़ एक बड़ा बाजार बन चुका है। प्रदेश की बालाओं को बहला-फुसलाकर देश के अन्य राज्यों में ले जाकर बेच देने की कई घटनाएं सामने आई हैं।
आंकड़ों पर गौर करने पर पता चलता है कि बीते तीन साल में करीब साढ़े छह हजार महिलाएं गायब हो चुकी हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें लगभग आधी संख्या नाबालिग लड़कियों की है। पुलिस गुमशुदगी का मामला दर्ज कर अपना कर्तव्य पूरा कर रही है। इन लड़कियों का आंकड़ा साल दर साल बढ़ता जा रहा है।
राज्य में मानव तस्करी की सबसे ज्यादा घटनाएं आदिवासी बहुल सरगुजा और बस्तर में सामने आ रही हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2007 से 2009 के बीच राज्य से करीब 18664 लोगों के गुम होने की रिपोर्ट दर्ज की गई।
इनमें सबसे ज्यादा संख्या महिलाओं और बालिकाओं की है। इन तीन सालों में लगभग 4500 से अधिक नाबालिग लड़के भी गायब हुए हैं। पुलिस अफसरों के अनुसार पिछले कुछ सालों के दौरान राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में भी गुमशुदगी के मामले बढ़े हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर मामले थानों तक नहीं पहुंचते। इस वजह से वहां के सही आंकड़े नहीं मिल पाते।
-शिकायत ही नहीं पहुंचती
राज्य के आदिवासी क्षेत्रों से भी बड़े पैमाने पर महिलाओं और युवतियों के गुम होने की घटनाएं हो रही हैं। जानकारी का अभाव सहित अन्य कारणों से इनमें से ज्यादातर मामलों की शिकायत पुलिस तक नहीं पहुंच पाती।
-पकड़ी जा चुकी है मानव तस्करी
करीब दो साल पहले रायपुर पुलिस ने एक कंटेनर पकड़ा था। उसमें 50 से अधिक लोगों को चोरी-छिपे दूसरे राज्य ले जाया जा रहा था। जम्मू व उत्तरप्रदेश सहित कई अन्य राज्यों में यहां के लोगों को बंधक बनाए जाने की भी लगातार सूचनाएं आती रहती हैं।
सरकार स्वीकार चुकी है मानव तस्करी
पूर्व गृहमंत्री नंदकुमार पटेल के अनुसार राज्य की बालिकाओं और मासूम बच्चियों की तस्करी की जा रही है। उन्हें दूसरे राज्यों में ले जाकर बेचा जा रहा है। वर्तमान सरकार भी इस बात को विधानसभा में स्वीकार कर चुकी है। इसके बावजूद इसे रोकने का कोई प्रयास नहीं हो रहा है।
-महानगरों में सप्लाई
करीब ढाई साल पहले बस्तर की एक लड़की को दिल्ली पुलिस ने कुछ लोगों की चंगुल से मुक्त कराया था। युवती को अच्छा काम दिलाने के बहाने दिल्ली ले जाकर बेच दिया गया था। पुलिस अफसरों के अनुसार सरगुजा क्षेत्र की कई लड़कियों को दिल्ली, मुम्बई व पुणे आदि शहरों से मुक्त करा कर लाया गया है।
-नहीं देते सूचना
पुलिस अफसरों के अनुसार कई बार गुम इंसान कुछ समय बाद लौट आता है, लेकिन परिवार के लोग इसकी सूचना थाने में नहीं देते। इस वजह से भी आंकड़े बढ़ जाते हैं।
गुम इंसानों की तलाश के लिए हरसंभव प्रयास करने के निर्देश सभी थानों को दिए गए हैं। इसके तहत समय-समय पर थाना स्तर पर गुम इंसानों का पॉम्पलेट और पोस्टर भी चस्पा किया जाता है। दूसरे थानों, जिलों और प्रदेशों को भी सूचना दी जाती है। इसकी मॉनिटरिंग के लिए पुलिस मुख्यालय में सीआईडी शाखा के अधीन राज्यस्तरीय एक सेल भी बनाया गया है।
-राजेश मिश्रा, प्रवक्ता, छत्तीसगढ़ पुलिस
साभार : पत्रिका रायपुर , संजीत कुमार

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क्यों कोई नहीं डरता जनता से ?

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सुनने में उन्हें जरूर बुरा लग सकता है जो सरकार से या फ़िर सीधे पी डब्लु डी डिपार्टमेंट से जुड़े हैं , लेकिन सच तो यह है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री के निवास से सीधे नया सर्किट हाऊस जाने वाली आधा किलोमीटर की नई बनी सड़क में चार जगह आपको लहर, उतार-चढ़ाव मिलेंगे । जब यह हाल मुख्यमंत्री के सामने की सड़क का हो सकता है तो सोचिए बाकि जगह काम कैसा होता होगा ? मुख्यमंत्री निवास से विधानसभा जाने वाला मार्ग की टायरिंग इससे पहले कि बार उखड़ चुकी है । हफ़्तों अखबारों के पन्ने रंगे रहे इनकी खबरों से । हर साल बनने वाली यह सड़क जिसके दोनो ओर नेता प्रतिपक्ष, मंत्रियों , मुख्य सचिव अन्य अधिकारियों के बंगले हैं वह उखड़ती है और किसी को कोई फ़र्क तक नहीं पड़ता । ठेकेदार का रुतबा कम नहीं होता , उसे और नए नए काम दिये जाते हैं । क्या है यह सब ? क्यों कोई नहीं डरता जनता से  ?  
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