न 'आचार’ है न 'विचार' और न ही 'सहिंता’चार-सहिंता'!
राष्ट्र प्रगति की दसा और दिशा क्या हो?
गरीबो के नाम अमीरो का रथ, नाम ''गरीब-रथ"
भारत का वैश्विक परिचय

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विवेकानंद जी का शिकागो संभाषण
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मध्यकालीन भारत: आक्रांताओं का आक्रमण और हमारी सांस्कृतिक चेतना का संघर्ष
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कहानी: अब कुंभ में बिछड़ते नहीं, मिलते हैं! धर्म और विज्ञान का अद्भुत मिलन!
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रोहित को ज्यादा समझ नहीं आया, लेकिन वह साहस जुटाकर वहां चला गया। केंद्र में एक पुलिसवाला बैठा था, और उसके साथ बड़ी-बड़ी स्क्रीन लगी थीं। पुलिसवाले ने रोहित से पूछा, "बेटा, डरने की ज़रूरत नहीं है। तुम्हारे परिवार को ढूंढने में AI हमारी मदद करेगा।"
पुलिस ने रोहित की तस्वीर एक कैमरे में खींची और उसे तुरंत AI सिस्टम में अपलोड कर दिया। चंद सेकंड में एक जवाब आया—"रोहित का परिवार मेले के दूसरे छोर पर मौजूद है।"
रोहित को वहां ले जाने के लिए तुरंत पुलिस की गाड़ी तैयार की गई। जब रोहित अपने माता-पिता से मिला तो उसकी मां की आंखों में खुशी के आंसू थे।
इस घटना के बाद, रोहित के पिता ने कहा, "पहले के जमाने में लोग कहते थे कि कुंभ में बिछड़े लोग कभी नहीं मिलते। लेकिन अब, इस 'AI के जमाने' ने साबित कर दिया कि कुंभ में बिछड़े लोग कुंभ में ही मिल सकते हैं।"
तभी पास में खड़ा एक साधु मुस्कुराते हुए बोला, "भई, ये तो विज्ञान और श्रद्धा का संगम है।"
सीख:
तकनीक अगर सही दिशा में इस्तेमाल हो, तो बड़े से बड़े संकट को हल किया जा सकता है। आधुनिक युग की तकनीक और मानवता का मेल हमेशा चमत्कार करता है।
कहानी: धन बल से नहीं, कानून से न्याय
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कृष्णा बारस्कर: गाँव के साधारण किसान रघु की ज़मीन उसके जीवन का सहारा थी। एक दिन उसका पड़ोसी महेश, जो ताकत और प्रभाव में बड़ा था, ने रघु की ज़मीन का एक हिस्सा अवैध रूप से हड़प लिया। महेश ने रघु को धमकाते हुए कहा, "अगर तूने इस बारे में कुछ कहा, तो अंजाम बहुत बुरा होगा।"
रघु अपने परिवार की सुरक्षा और गरीबी के डर से चुप रहा। लेकिन मन ही मन उसे इस अन्याय से गहरी पीड़ा हो रही थी। एक दिन गाँव में अधिवक्ता कृष्णा बारस्कर आए, जो कानून के जानकार और न्यायप्रिय व्यक्ति थे।
अधिवक्ता ने जब रघु की समस्या सुनी, तो उन्होंने कहा, "रघु, भारतीय कानून हर व्यक्ति को उसके अधिकार की रक्षा का साधन देता है। तुम्हें अपनी जमीन वापस पाने और इस अन्याय के खिलाफ खड़ा होने का हक़ है।"
कानून का सहारा
अधिवक्ता ने रघु को समझाया कि इस मामले में सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) और विशेष राहत अधिनियम, 1963 की धाराओं का सहारा लिया जा सकता है:
- CPC की धारा 9 और 34: रघु अपनी जमीन पर कानूनी अधिकार स्थापित करने और हड़पे गए हिस्से को वापस पाने के लिए सिविल कोर्ट में मामला दायर कर सकता है।
- विशेष राहत अधिनियम की धारा 5 और 6: रघु अवैध कब्जे को हटाने और अपनी संपत्ति की रक्षा के लिए इस अधिनियम के तहत अधिकार प्राप्त कर सकता है।
- संविधान का अनुच्छेद 300A: यह अनुच्छेद कहता है कि किसी भी व्यक्ति की संपत्ति को बिना कानूनी प्रक्रिया के छीना नहीं जा सकता।
अधिवक्ता ने यह भी बताया कि यदि महेश ने जबरदस्ती और धमकी का सहारा लिया है, तो यह भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत अपराध है।
- BNS की धारा 329: महेश ने रघु की जमीन पर अवैध अतिक्रमण किया।
- BNS की धारा 351: महेश द्वारा रघु को दी गई धमकी आपराधिक धमकी के अंतर्गत आती है।
न्याय की लड़ाई
अधिवक्ता कृष्णा बारस्कर की मदद से रघु ने अदालत में मामला दायर किया। अदालत ने सबूतों और गवाहों के आधार पर फैसला सुनाया कि महेश ने अवैध तरीके से रघु की जमीन पर कब्जा किया था। अदालत ने आदेश दिया कि:
- रघु को उसकी जमीन तुरंत वापस की जाए।
- महेश पर अवैध कब्जा और धमकी के लिए जुर्माना लगाया जाए।
न्याय की जीत
शिक्षा:
हमें अपने कानूनी अधिकारों को जानना और समझना चाहिए। डर के आगे झुकने के बजाय, सच्चाई और कानून का सहारा लेना चाहिए। भारतीय कानून हर नागरिक को न्याय और सुरक्षा की गारंटी देता है।
कहानी: "संतोष का वरदान"
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कृष्णा बारस्कर: एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में एक व्यक्ति, मोहन, रहता था। मोहन को हमेशा बेहतर से बेहतर पाने की चाह रहती थी। उसने बचपन से यह सीखा था कि सफलता का मतलब है हर चीज़ में सर्वोत्तम हासिल करना। लेकिन इस चाह में, वह अपनी वर्तमान खुशियों को अनदेखा कर देता।
मोहन के पास एक सुंदर घर, हरा-भरा खेत, और एक खुशहाल परिवार था। लेकिन वह कभी संतुष्ट नहीं हुआ। वह हमेशा सोचता, "अगर मेरे पास बड़ा घर होता, तो मैं खुश होता। अगर मेरे खेत में और फसल होती, तो मेरा जीवन और बेहतर होता।"
एक दिन, मोहन को एक साधु मिला। साधु ने उसे चिंतित देखकर पूछा, "तुम्हारी परेशानी क्या है, बेटा?"
मोहन ने कहा, "बाबा, मैं अपने जीवन में कभी संतुष्ट नहीं हो पाता। मैं हमेशा बेहतर की तलाश में रहता हूँ, लेकिन खुशी कहीं नहीं मिलती।"
साधु ने मुस्कुराते हुए कहा, "तो क्या तुम मेरे साथ जंगल में चलोगे? मैं तुम्हें खुशी का रहस्य बताऊँगा।"
मोहन सहमत हो गया। वे दोनों जंगल की ओर चल पड़े। रास्ते में साधु ने एक पोटली दी और कहा, "इसमें कुछ अनमोल चीज़ें हैं। इसे संभालकर रखना।"
जंगल में चलते-चलते, मोहन का ध्यान पोटली पर गया। उसने सोचा, "इसमें क्या होगा? सोना, चाँदी, या हीरे?" उसने लालच में आकर पोटली खोल दी। लेकिन अंदर केवल कुछ बीज थे।
मोहन को निराशा हुई। उसने साधु से कहा, "बाबा, यह तो बस बीज हैं। इनसे मैं क्या करूँगा?"
साधु ने कहा, "इन बीजों को बोओ और देखो, यह तुम्हें क्या सिखाते हैं।"
मोहन ने बीज बो दिए। कुछ समय बाद, उन बीजों से पौधे उग आए। साधु ने कहा, "अब इन पौधों को रोज़ पानी दो और देखो।" मोहन ने ऐसा ही किया। धीरे-धीरे, पौधे बड़े पेड़ों में बदल गए और उन पर फल आने लगे।
साधु ने कहा, "देखो, खुशी का रहस्य यही है। जैसे इन बीजों को धैर्य, देखभाल और समय की जरूरत थी, वैसे ही तुम्हारे जीवन को भी है। अगर तुम अपने पास जो है, उसकी देखभाल करोगे और उसका आनंद लोगे, तो तुम्हें सच्चा संतोष मिलेगा।"
मोहन को समझ आ गया कि उसकी असंतुष्टि का कारण उसकी अस्थिर इच्छाएँ थीं। उसने अपने जीवन की ओर एक नई दृष्टि से देखना शुरू किया। उसने वर्तमान का आनंद लेना और छोटी-छोटी चीज़ों में खुशी ढूँढना सीखा। अब वह सचमुच संतुष्ट और खुशहाल था।
शिक्षा:
सच्चा सुख हमेशा अपने पास मौजूद चीज़ों की कद्र करने और वर्तमान में जीने से मिलता है। बेहतर की तलाश में अपनी शांति और खुशियों को अनदेखा न करें।
कहानी: स्वच्छंदता और महत्वाकांक्षा: जीवन का सही पथ
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जीवन एक आजाद पंछी था, जो हर सुबह सूरज की किरणों के साथ आसमान में उड़ने निकल पड़ता। वह बगीचे के हर कोने में गाना गाता, नदी के किनारे बैठकर सूरज को डूबते देखता, और फूलों की खुशबू में अपनी सुबह की शुरुआत करता। वह जो भी पाता, उसे खुशी से स्वीकार करता और हर पल का आनंद लेता।
दूसरी ओर प्रतिस्पर्धा हमेशा कुछ नया और बड़ा पाने के लिए व्यस्त रहता। उसका मानना था कि जीवन में केवल बेहतर पाने की कोशिश ही वास्तविक खुशी है। वह रोज़ नए-नए लक्ष्य तय करता और उन्हें पाने के लिए दिन-रात मेहनत करता। लेकिन हर बार जब वह एक लक्ष्य को हासिल करता, तो उसे कुछ और बड़ा पाने की चाह सताने लगती।
समय बीता और 40 साल बाद दोनों मित्र फिर से एक नदी के किनारे मिले। जीवन अभी भी उतना ही खुश था, जितना पहले था। उसने अपनी कहानी सुनाई: “मैंने हर दिन खुशी से बिताया। जो मिला, उसे अपनाया। मैंने आसमान को छुआ, हवाओं को महसूस किया और बगीचे की हर छोटी चीज़ का आनंद लिया।”
प्रतिस्पर्धा ने सिर झुकाया और कहा, “मैंने अपनी जिंदगी कुछ बडे़ लक्ष्यों के पीछे दौड़ते हुए बिता दी। जो पाया, उससे संतुष्ट नहीं हुआ, और जो नहीं पाया, उसकी चिंता करता रहा। आज मेरे पास सब कुछ है, लेकिन वह खुशी नहीं है जो तुम्हारे पास है।”
जीवन मुस्कुराया और बोला, “दोस्त, जीवन का असली सुख हर पल में छुपा है। जो वर्तमान में है, उसे अपनाओ। बड़ा पाने की चाह अच्छी है, लेकिन अपने आज को मत भूलो।”
उस दिन प्रतिस्पर्धा ने ठान लिया कि वह भी अब अपने जीवन का आनंद लेना शुरू करेगा।
कहानी का संदेश: संतुष्टि और वर्तमान में जीने का महत्व हमें सिखाता है कि सच्ची खुशी बाहरी उपलब्धियों में नहीं, बल्कि छोटे-छोटे पलों को अपनाने में है।
कहानी: संतोष का पाठ
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छोटी सी शिक्षाप्रद कहानी:
एक दिन, मोहन ने रवि से अपनी समस्याओं पर चर्चा की। रवि ने मुस्कुराते हुए कहा, "मोहन, तुम्हारे पास बहुत कुछ है, लेकिन तुम्हारी असंतुष्टि तुम्हें कभी चैन नहीं लेने देगी। जो तुम्हारे पास है, उसकी कद्र करो। खुश रहने के लिए भौतिक चीजों से ज्यादा आत्मिक संतोष जरूरी है।"
मोहन ने रवि की बातों पर विचार किया। उसने महसूस किया कि उसकी असली खुशी भौतिक चीजों में नहीं, बल्कि जीवन के छोटे-छोटे पलों में छिपी है। धीरे-धीरे, उसने संतोष और अपने प्रियजनों के साथ समय बिताने का महत्व समझा।
शिक्षा:
जीवन में संतोष और अपनों के साथ बिताया गया समय सबसे बड़ी संपत्ति है। असली खुशी भीतर से आती है, न कि बाहरी चीजों से।