‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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क्या ये मेरी खता थी?

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तेरे दामन से जो लिपट गयी चुनरी मेरी
दुनिया ने कहा मेरे चलने में खता थी
हवा ने रूख मोड़ा और उड़ गयी वो
बता तो क्या ये सिर्फ मेरी खता थी?
..
फिसलती राहो से गुजरते गिरी तेरे बाहो में
दुनिया ने कहां मेरी राह चुनने की खता थी
तेरी मासूम सूरत देखी और राह भटक गई
बता तो क्या ये सिर्फ मेरी खता थी?
..
दुनिया समझने मैं चली, खोया दिल तेरे हाथों में
दुनिया ने कहा खरीददार चुनने में खता थी
दिलों का मेला इतना बड़ा भूल हुई चुनने में
बता तो क्या ये सिर्फ मेरी खता थी?
..
ये गया तू मेंरी ख्वाबो की पंखुड़िया बिखराकर
दुनिया कहती है, मेरी खुशबू में कमी थी
हर पुष्प की अभिलाषा है रे भौरे तू
बता तो क्या ये सिर्फ मेरी खता थी?

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यू अकड़कर दूर जाना तेरा..

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यू अकड़कर दूर जाना तेरा..
अक्सर हमें और करीब ला लेता है॥
हमसे दूर जाने का बहाना है तेरा?
या हमें सताने का कोई ख्याल मन में आता है?

अक्सर भौरों को फूलो पर मंडराते देखे है मैंने॥
फूल का भौरों की राह ताकना देखो क्या रंग लाता है॥
उस खुदा के उसूलो में उलझ जाते है कभी कभी॥
जो न चाहो वो करीब ही है॥
और जो चाहो वो बड़ी मिन्नतो से आता है॥
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