भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट दौरे की स्वीकृति देकर क्रिकेट बोर्ड ने पुनः अपनी निरंकुश स्वेच्छा चारिता का परिचय दिया है। भारतीय क्रिकेट बोर्ड न केवल देश के समस्त खेल संगठनों में आर्थिक रूप में मजबूत संगठन है बल्कि विश्व के भी गिने चुने अमीर खेल संगठनों में उसकी गिनती होती है। किसी भी खेल के सुविरचित विकास के लिए यह आवश्यक है कि उसका खेल संगठन स्वायत्ताती हो और उस खेल के विशेषज्ञ लोगों से वह परिपूर्ण हो। दुर्भाग्यवश भारत का क्रिकेट बोर्ड स्वायत्त होने के बावजदू क्रिकेट विशेषज्ञो से परिपूर्ण नहीं है जिसके अध्यक्ष और शक्तिशाली पदाधिकारी अधिकांश रूप से राजनेता या उद्योगपति रहे है।
क्रिकेट भारत का एक लोकप्रिय खेल है। यद्यपि विदेशी खेल है लेकिन इसी खेल पर बनी फिल्म ‘लगान’ में जब आमीर खान की टीम ब्रिटिस टीम को हराती है तो हमें एक आत्मिक संतोष मिला था। लेकिन वही क्रिकेट के माध्यम से जब हम पास्तिान से संबंध सामान्य, शांती से करना चाहते है जो हमारा एक स्थाई पड़ोसी शत्रु देश (पड़ोसी होना हमारे हाथ में नहीं है।) से हमारा न केवल दो बार युद्ध हो चुका है बल्कि लगातार वह हमारा देश में हो रही आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त भी रहा है मुम्बई बम आतंकवादी कार्यवाही जैसे कर उसने जन मानस के दिल को झकझोर दिया थे। इस कारण से हमारी सरकार और बोर्ड ने तत्समय क्रिकेट टीम के दौरे पर दोनो देशो के बीच प्रतिबंध लगा दिया था। जिन कारणों से इस देश की सरकार और क्रिकेट बोर्ड ने प्रतिबंध लगाया था और आज जब प्रतिबंध खोला है तो दोनों की यह सामूहिक जिम्मेदारी है कि वे जनता के बीच एक स्वेत पत्र जारी करें कि क्या वे कारण दूर हो गये है या उनको यह भरोसा दिलाया गया है कि वे कारण दूर हो जाएंगे या प्रतिबंध के समय जो तत्कालीन आरोप थे वे गलत थे ऐसा उन्हे आज एहसास हुआ है। तभी उनकी यह कार्यवाही सही कहीं जाएगी अन्यथा बालासाहेब ठाकरे ने ‘सामना‘ में जो विचार यद्यपि असंयमित शब्दों में कहा है वही भावना जो पूरे देश की है को ही व्यक्त किया है।
एक आम भारतीय के जेहान में यह प्रश्न कौंधता है कि क्या क्रिकेट बोर्ड देशभावना से ऊपर हो गया है? क्या मार्केटिंग के दौर में क्रिकेट का व्यापार ही क्रिकेट बोर्ड की प्राथमिकता हो गई है? क्या करोड़ो रूपये कमाकर, अमीर बोर्ड कहलाना ही बोर्ड का एकमात्र उद्वेश्य रह गया है? यदि ऐसी स्थिति वास्तव में बन रही है तो क्या यह समय नहीं आ गया है कि ऐसे क्रिकेट बोर्ड को तुरंत भंग कर दिया जाए। लेकिन प्रश्न फिर यही उठता है कि इस क्रिकेट बोर्ड को भंग कौन करेगा? क्योंकि जिस आधार पर क्रिकेट बोर्ड को भंग करने के विचार हमारे मन में आते है वही आधार और वही विचार केंद्रीय सरकार के प्रति भी आते है जो ही इस क्रिकेट बोर्ड को भंग कर सकती हैं। तो क्या हमारी यह भावना केंद्रीय सरकार को भंग करने की मानसिकता की ओर जा सकती है? यह बात समय के गर्भ में है।
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष है)
विगत दिनांक १७ नवम्बर २०११ से लगातार ''स्टार न्यूज" द्वारा वर्ष १९९६ में भारत श्रीलंका के बीच हुए वल्र्ड कप सेमीफाईनल मैच में कप्तान मो. अजरूद्दीन द्वारा प्रथम फिल्डिंग करने के लिये गये निर्णय बाबत तत्कालीन टीम इंडिया के सदस्य विनोद कांबली द्वारा शंका की उंगली मो. अजरूद्दीन पर उठाई गई है। इस पर न केवल स्टार न्यूज द्वारा सतत लाईव बहस व न्यूज प्रसारण विगत चार दिवस से जारी है अपितु आज की इस गलाफाड़ प्रतिस्पर्धा के युग में अन्य न्यूज चैनल ''आज तक" इत्यादि द्वारा भी प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए इस मुद्दे पर बहस दिखाई जा रही है। क्या यह अनावश्यक होकर देश के समय की बर्बादी और टीआरपी के चक्कर में देश की ईज्जत के साथ खिलवाड़ नहीं है? यह एक प्रश्र एक लगातार प्रसारण स्टार न्यूज चैनल को देखने वाले नागरिकों के दिमाग में कौंध रहा है वह इसलिए कि विनोद कांबली के उक्त शंका पर इतनी लम्बी बहस का कोई मुद्दा ही नहीं बनता है क्योंकि उक्त आरोप के समर्थन में १६ सदस्यीय टीम का कोई भी सदस्य सामने नहीं आया है। जिसे आगे विश्लेषित किया जा रहा है।
सर्वप्रथम यदि हम विनोद कांबली के आरोपो पर दृष्टि डाले तो उन्होने प्रथम बार १७ तारीख को स्टार न्यूज से बातचीत करते हुए कहा कि १९९६ के उक्त मैच के एक दिन पूर्व टीम इंडिया ने सामूहिक निर्णय प्रथम बल्लेबाजी करने का लिया था उसे तत्कालीन कप्तान अजरूद्दीन ने टॉस जीतने के बाद बदलकर फील्डिंग का जो निर्णय लिया जिससे भारत को हार का सामना करना पड़ा। इस कारण उन्होने मैच फिक्सिंग की आशंका व्यक्त की है। लगभग १५ वर्षो के बाद अब यदि विनोद कांबली जो स्वयं भी उस टीम के महत्वपूर्ण सदस्य थे उक्त देरी के लिए उचित स्वीकारयोग्य स्पष्टीकरण के अभाव में आज अकारण ही बिना किसी सबूत के उक्त गम्भीर आरोप लगाकर मात्र आशंका ही जाहिर कर रहे है। मैच फिक्सिंग होने का कोई पुख्ता दावा प्रस्तुत नहीं कर रहे है। इससे यही सिद्ध होता है कि उनके उक्त आरोप को गंभीरता से लेने की आवश्यकता बिल्कुल भी नहीं है जैसा कि इलेक्ट्रानिक मीडिया उसे दे रहे है। इसके बावजूद हमें यह देखना होगा की क्या उनके बयान में एक प्रतिशत की भी सत्यता है? श्री कांबली के बयान पर यदि बारीकी से गौर किया जाये तो उन्होने यह स्पष्ट कहा की टीम इंडिया का प्रथम बैटिंग करने का सामुहिक निर्णय पूर्व रात्री में लिया गया था जिसे कप्तान अजरूद्दीन ने दूसरे दिन टॉस जीतकर बदल दिया यदि यह तथ्य वास्तव में सही व प्रमाणित है तो बिना किसी अन्य साक्ष्य के कांबली का आरोप प्रमाणित होता है। इसके लिए खेल मंत्रालय, बीसीसीआई एवं आईसीसीआई को केवल कांबली के बयान के आधार पर आवश्यक कार्यवाही करनी चाहिए बल्कि मो. अजरूद्दीन पर देशद्रोह का मुकदमा भी चलना चाहिए था मात्र आजीवन प्रतिबंध लगाकर छोड़ नहीं दिया जाना था। अत: क्या वास्तव में अजरूद्दीन व टीम इंछिया का निर्णय प्रथम बैटिंग का था मूल मुद्दा यही है। तत्कालीन १६ सदस्यीय टीम के अन्य समस्त सदस्यों में से कोई भी सदस्य कांबली के टीम इंडिया के निर्णय दिये गये उक्त कथन का समर्थन नही रहे है। इसके विपरीत टीम के सबसे महत्वपूर्ण सदस्य टीम मैनेजर अजीत वाडेकर, सदस्य वेंकटपति राजू व अन्य दो तीन सदस्यों ने चैनल के साथ बातचीत करते हुए यह स्पष्ट कहा है कि टीम इंडिया का जो सामुहिक निर्णय हुआ था वह फिल्डिंग करने का था न कि बैटिंग का क्योंकि श्रीलंका टीम उस समय टारगेट चेस करने में ज्यादा सफल हो रही थी (फाईनल में भी टीम चेस करने में ही जीती है)। तीन-चार सदस्यों ने इस संबंध में चैनल द्वारा सम्पर्क करने पर अपने कोई कमेंट्रस नहीं दिये व शेष सदस्यों से स्टार न्यूज का कोई सम्पर्क हुआ या नहीं यह भी चैनल द्वारा स्पष्ट नहीं किया गया। अर्थात १६ सदस्यीय टीम में से कोई भी सदस्य कांबली के कथन का समर्थन नहीं करता है। नवजोत सिंह सिद्दू का तत्समय दिया गया बयान कि टीम पहले बैटिंग करेगी या स्टार न्यूज के दीपक चौरसिया का यह कथन कि सिद्दू ने कही अनोपचारिक चर्चा में प्रथम बैंटिंग निर्णय को स्वीकार किया, जिसमें ही यह गलतफहमी फैली है। लेकिन चैनल द्वारा सिद्दू से इस प्रकरण में प्रतिक्रिया मांगने पर उनका प्रतिक्रिया देने से इंकार करना काम्बली के दावे का पूर्णत: कमजोर करता है। एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते एक सासंद होने के कारण उन्हे स्वयं आगे आकर उस समय लिये गये टीम निर्णय के बाबत जानकारी देश को देनी चाहिए थी ताकि चैनल द्वारा फैलाया गया धुआ साफ हो जाता। इसके बावजूद लगातार चार दिन से सतत बहस दिखाना, शंका को जन्म देता है। जितने भी चैनलों द्वारा इस संबंध में लोगो की प्रतिक्रियाए दिखाई जा रही है। उनमें से जो लोग जॉच की मांग कर रहे है उनमें से कोई भी व्यक्ति यह नहीं कह रहा है कि टीम का निर्णय पहले बैटिंग का था जिसे टास जीतने के बाद बदला गया। टीम इंडिया का फिल्डिंग का निर्णय जो लिया गया वह गलत तो हो सकता है जो बाद में हार के परिणाम स्वरूप गलत भी सिद्ध हुआ लेकिन इसे गलत निर्णय को बदला गया निर्णय बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता है। सामुहिक निर्णय गलत सिद्ध होने पर किसी भी व्यक्ति की फिक्सिंग का आरोपी नहीं माना जाता है। इसके बावजूद इलेक्ट्रानिक मीडिया द्वारा इस तरह देश की टोपी को पूरे विश्व में उछालने जो कार्य हो रहा है उस पर तुरंत रोक लगाई जानी चाहिए।
ऐसा लगता है कि इस घटना पर वैसी ही राजनीति हो रही है जैसे देश में आमतौर पर घटित कोई भी घटना पर होती है। देश के खेलमंत्री जी का यह कथन की इसकी जॉच की जानी चाहिए राजनीति की इसी कड़ी का बयान है क्योंकि इसके पूर्व कामन्वेल्थ खेल कांड में उन्होने प्रभावशाली जॉच की मांग नहीं की थी। चुंकि मैच फिक्सिंग का यह मामला सीधे क्रिकेट से जुड़ा है व क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था बीसीसीआई पर खेलमंत्री नकेल डालने का असफल प्रयास कर रहे है इसलिए उनका उक्त बयान आया है। इस देश में यह आम प्रचलन हो गया हे जब भी कोई व्यक्ति किसी दूसरे पर आरोप लगाता है। चाहे वह सरकार के विरूद्ध हो, संस्था के विरूद्ध हो व्यक्तिगत हो तुरन्त जॉच आयोग के गठन की मांग की जाती है आयोग का गठन हो जाता है। जॉच आयोग के बाद समय बीतने के साथ समय के गर्भ में संबंधित पक्षकार भी घटना को भूल जाते है लोग व मीडिया भी उस घटना को भूल जाते है और मामला दफन सा हो जाता है। वास्तव यदि किसी तथ्य की जॉच होनी चाहिए तो वह इस बात की कि स्टार न्यूज ने विनोद कांबली के साथ मिलकर देश की साख पर बट्टा लगाने के मूल्य पर मात्र टीआरपी बढ़ाने के लिए विनोद कांबली के साथ फिक्सिंग तो नहीं की है। जिसके समर्थन में कोई भी तथ्य संबंधित व्यक्तियों के आगे आने के बावजूद स्टार न्यूज या अन्य चैनल प्रस्तुत नहीं कर सके है बल्कि उपलब्ध समस्त कथन, साक्ष्य या तो कांबली के विपरीत हो या मौन है लेकिन तथ्यात्मक रूप से समर्थन में नहीं बल्कि भावनात्मक रूप से। इसकी जॉच की जाकर परिणाम को लोगो के सामने उजागर करना चाहिए जिससे न केवल उक्त फिक्सिंग का सच सामने आये बल्कि उक्त मैच भी फिक्स था या नहीं पता चल सकेगा ताकि भविष्य में इस तरह की ब्राड कास्टिंग-मैच फिक्सिंग न हो सके।
लिखना तो आज हम कुछ और चाह रहे थे पर हर तरफ सचिन सचिन के शोरे ने जैसे कुछ और लिखने ही नहीं दिया तो हमने भी अपना रुख सचिन की तरफ ही मोड़ लिया सोचा क्यों ना हम भी अपने देश के महानतम बल्लेबाज़ सचिन के लिए दो शब्द कह ही दे ! जिस तरह से वो अपने आप को इतिहास के पन्नो मै दर्ज करवाते जा रहे हैं सच मै काबिले तारीफ है ! हम तो ये कहेंगे की अगर किसी भी तरह का ठंग व् तकनिकी का संगम कही देखना हो तो वो सचिन की बल्लेबाज़ी मै मिलती है ! आज से 21 साल पहले सचिन ने न्यूज़ीलैंड के खिलाफ 88 रन बनाये थे जब वो लोट कर पवेलियन आ रहे थे तो उनकी आँखों मै आंसू थे !अपने करियर का पहले शतक से चुक जाने का दर्द उनकी आँखों से साफ़ झलक रहा था ! उसी सचिन ने उस दर्द को अपने ज़ेहन मै एसे संजोया की उसे ही अपनी हिम्मत बनाकर आगे का सफ़र जारी रखते हुए टेस्ट क्रिकेट मै अपनी 50 वी सेंचुरी दर्ज कर दी ! क्रिकेट के प्रति उनके बेइंतिहा प्यार , सम्मान और प्रशंसको के विश्वाश को बनाये रखने के ज़ज्बे ने उनके लक्ष्य तक पहुँचने के सफ़र को आसां बना दिया ! सचिन के चाहने वालो ने उन्हें क्रिकेट की दुनिया का भगवान तक नाम दे दिया ! जनता का उनके प्रति प्यार , सम्मान , भरोसा और उनका साधारण व्यक्तित्व जनता को प्रभावित भी करता है ! क्युकी मनुष्य की पहचान उसकी एक खूबी को लेकर नहीं बल्कि उसके सभी पहलुओ को लेकर की जाती है ! सचिन के धुवांधार बलेबाज़ी ने लोगो के दिलो मै क्रिकेट के प्रति लगाव को और अधिक बढावा दिया है ! समय - समय पर उनके प्रदर्शन को देखते हुए उनके साथी खिलाडियों ने उन्हें खुबसूरत टिप्णियो से भी नवाज़ा है ! एक बार डान ब्रेडमेन ने कहा था ................सचिन को दूरदर्शन मै खेलते देखकर मुझे लगता है जेसे मै ही खेल रहा हु !इसी तरह सर गिरफिल्ड सोबर्स ...............ने उन्हें दुनिया के महानतम खिलाडियों से नवाज़ा था ! उन्होंने कहा था ...............मैने बहुत से तेंदुलकर देखे , लेकिन उनमे से ये बेस्ट है ! सचिन को क्रिकेट का भगवान पहली बार........... बेरी रिचर्ड्स ने कहा था ! वन डे मै 46 सेंचुरी और सबसे ज्यादा रन ! टेस्ट मै 50 सेंचुरी और सबसे अधिक रन सच मै किसी का किसी के प्रति जूनून और हिम्मत ही ये सब कमाल करवा सकती है ! जब विव रिचर्ड्स............. जेसा महान खिलाडी ये कह सकता है की मै सचिन को टिकट लेकर भी खेलते देखना चाहूँगा तो इससे बड़ी बात क्या हो सकती है ! उन्होंने सचिन को 99.5% परफेक्ट बताया था ! ये सभी बाते सचिन को सबसे हटकर एक अलग पहचान दिलाती है ! सचिन के शतको का सफ़र ........................................ सतक रन विरुद्ध तिथि स्थान पहला शतक - 119 रन ..इंग्लैंड .......14 अगस्त 1990 ....मेनचेस्टर 10 वां शतक- 117 रन ...इंग्लैंड .......5 जुलाई 1996 .......नाटिघम 20 वां शतक- 26 रन ....न्यूज़ीलैंड ...13 ओक्टुबर 1999....मोहाली 30 वां शतक- 193 रन ....इंग्लेंड ......23 अगस्त 2002.....लीडस 40 वां शतक- 109 रन ...ओस्ट्रेलिया....6 नवम्बर 2008 .....नागपुर 50 वां शतक- 107 रन ....द. अफ्रीका...19 दिसम्बर 2010. .सेंचुरियन तो ये था हमारे महान बल्लेबाज़ मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर की जिंदगी का एक शानदार सफ़र जो आज भी जारी है ! उनका ये जूनून आज की उभरती नोजवान पीड़ी को अपना सफ़र जारी रखने मै हिम्मत और ताक़त की याद दिलवाती रहेगी और उन्हें भी सचिन की तरह उँचइयो को छु सकने का रस्ता बताती रहेगी ! वो उनके इस एहसास को बनाये रखएगी की .................... "कदम चूम लेती है खुद आके मंजिल ! अगर राही खुद अपनी हिम्मत न हारे !! "
भारत ऑस्ट्रेलिया विशाखापट्टनम वनडे क्रिकेट मैच कई मायनो में बहुत ही यादगार और मनोरंजन से भरपूर रहा.. पहले ऑस्ट्रेलिया को हराना अस्चार्यजनक मन जाता था पर अब ये सामान्य बात हो गयी इसलिए मैच के हमारे जीतने पर किसीको कोई आस्चर्य तो नहीं हुवा होगा... मैच कि गौर करने वाली बात ये है कि मैच हमारे युवावो ने जीता है.. आशीष नेहरा काफी समय से बहार थे कि क्रिकेट में वापसी से काफी खुसी हुई. विराट कोहली का सटीक प्रदर्शन, युवराज की फ़ार्म में वापसी, नए चेहरे शिखर धवन के लिए दिन अच्छा नहीं था और सौरभ तिवारी को समय नहीं मिला उन्हें अभी और दिया जाना दिया जाना उचित होगा ताकि विश्व कप के लिए उनकी तैयारी का जायजा लिया जा सके.. कल कि जीत कुल मिलकर टीम प्रयास का नतीजा रहा.. और युवा टीम का इस तरह का प्रयास बहुत ही सराहनीय है..
मैच में ऑस्ट्रेलिया द्वारा दिए 290 रन के लक्ष्य को टीम ने एक चम्पियान कि तरह पा लिया। उक्त मैच में युवराज सिंह और विराट कोहली ने वही भूमिका निभाई जो सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ निभाया करते है.. उन्होंने अपनी सूज्बूझ भारी क्रिकेट से टीम को जीत के मुहाने पर ला दिया.. अब जरुरत थी फिनिश कि.. क्योंकि मैच आखरी में रन रेट का दबाव और विकेट पतन से हडबडाहट के कारन हम ज्यादातर मैच में हमने हार का मुह देखा है.. कुछ समय से बिना टेंसन के फिनिश करने का दारोमदार माही ने निभाया है पर उक्त मैच में फेल हो जाने पर सुरेश रैना ने संकट मोचन का किरदार निभाया... जिस वक़्त सुरेश रैना मैदान पर आये ऐसी परिस्थिति में हमेशा ही हमारे टीम के पैर लडखडा जाते है और जीत के मुहाने पर पहुच कर भी टीम भरभराकर गिर जाती है.. पर सुरेश रैना जैसे ही मैदान पर आये लगा ही नहीं कि वो मैदान पर अभी अभी उतरे है .. वो तो आये और 3rd गेअर लगा लिया और एक ही ओवर में 4th गिअर पर आ गए और तब तक अपना गेअर नहीं बदला जब तक कि टीम इंडिया जीत नहीं गयी.. उनके प्रदर्सन से टेस्ट में VVS लक्ष्मण कि भूमिका कि याद आ गयी जब लक्ष्मण मैदान पर आते है तो अग्रिम बल्लेबाजो का प्रदर्सन चाहे जो भी हो टीम के लिए जीत के रास्ते खोल देते है.. उनके व्यक्तित्व का दबाव सामने वाली टीम पर होता है.. मैच के बाद सुरेश रैना को वो तारीफ नहीं मिली जिसके वो हकदार थे पर उनकी भूमिका टीम बहुत अछि तरह जानती है.. सुरेश रैना पिछले एक वर्ष से यही प्रदर्शन दोहरा रहे है .. वनडे क्रिकेट के VVS लक्षमण का स्वागत है..
देखो रे कमाल रे सायना का कमाल रे कोमंवेल्थ मै रच दिया एक नया इतिहास रे वो आज बन गई हिंदुस्तान की शान रे सारी दुनिया कह रही कमाल रे कमाल रे छोटी सायना का नाम ले रहा सारा जहान रे हमारे देश को उसने कर दिया मालामाल रे उसके साथ हमारा भी हो गया देखो मान रे वो अभी तो ले रही है अपनी मेहनत का इनाम रे मैने भी लिख दिया उसके नाम ये पैगाम रे आज मेरा भी दिल कह रहा है तू जिए हजारों साल रे !
लगभग पचास दिन बाद ३ अक्टूबर से प्रारभ होने जा रहे ''कामनवेल्थ गेम'' इस समय इतनी चर्चा में है कि इस देश का प्रत्येक नागरिक चाहे वह पेपर पढ़े या न्यूज चैनल देखे, के दिलो दिमाग में यह मुद्दा बुरी तरह से छाया हुआ है। शायद इसीलिए आगामी ६३ वे पंद्रह अगस्त की याद हम लोगो को नहीं आ रही। मुझे भी जब एक स्थानीय टीवी चैनल ने १५ अगस्त के लिए मेरे कमेन्ट्स मांगे तब मुझे भी याद आया कि हम आगामी १५ अगस्त को ६३ वे स्वाधीनता दिवस की ओर बढ रहे है।
वैसे तो ''कामनवेल्थ'' के नाम से ब्रिटिश गुलामी की बू आती है। उसकी याद हमारे जेहन में इस स्वाधीनता दिवस के अवसर पर रहना एक दुखद स्थिति है। यदि ''कामनवेल्थ'' शद का विग्रह किया जाये तो उसमें शामिल ''वेल्थ'' हमें आगामीं होने वाले खेल आयोजन में सब जगह दिखाई दे रही है। शायद इसी कारण ही इसकी इस वृहत स्तर पर चर्चा है। लेकिन इसके प्रथम शब्द 'कामन' को देखे जो आज हमें ढूण्ढे नहीं मिल रहा है और उसकी जगह ''पावर'' ने ले लिया है और इसीलिए मैने उसे पावरवेल्थ गेम की संज्ञा दी हैं। '' क्योंकि उक्त खेल के आयोजन एवं संचालन में खिलाड़ीगण, खेल अधिकारीयों से ज्यादा 'पावर' से जुड़े व्यक्तियों (जैसे श्री सुरेश कलमाड़ी) की महती भूंमिका है। १९५६ के एशियन खेलो के बाद एशियाड ८२ सबसे बड़ा खेल आयोजन था जो कामनवेल्थ गेम से भी बडा था। लेकिन तब आयोजन ने इतनी चर्चा नहीं बटोरी जितनी की आज हो रही है। इसके बावजूद वह सफल आयोजन माना गया। क्या पिछले ३८ सालो में (एशियाड ८२ से) हमारा खेल का चरित्र, राजनैतिक चरित्र, या राष्ट्रीय चरित्र इतना बदल गया है कि हमने इस आयोजन के सपादित होने के पूर्व ही इतनी ज्यादा प्रशंसाए? प्राप्त कर ली हैं कि आयोजन से तमगे बाटने के बाद तमगे समाप्त हो जाने से हमें और कोई तमगे? (सफल आयोजन के) की आवश्यकता नहीं है? लगभग ०७ वर्ष पूर्व २००३ में कामनवेल्थ गेस का आयोजन नई दिल्ली को अलॉटमेंट होने के बाद बहुत लम्बा समय मिलने के बावजूद समय पर इस आयोजन से जुड़े समस्त निर्माण का व सुविधाओं के पूर्ण न होने से लेकर आयोजन के विभिन्न पहलुओं के सबंध में अनेक आरोप प्रत्यारोप आयोजन समीति और इसके प्रम़ुख श्री सुरेश कलमाड़ी व इसके सहयोगी तंत्र दिल्ली सरकार, केंञ्द्रीय शासन, विभिन्न खेलो के संघ और ओलम्पिक संघ पर लगाये जा रहे है। लेकिन जो सबसे गंभीर आरोप लगाया जा रहा है वह वृहद भ्रष्टाचार का है। बात सिर्फ भ्रष्टाचार की ही होती तो पिछले ३८ सालों में जिसमें हमारा मूल चरित्र इतना बदल गया है कि हमारे द्वारा अब सामान्य भ्रष्टाचार को सामान्य शिष्टाचार के रूप में स्वीकार कर लेने के कारण इस पर हमारी कोई प्रतिक्रिया ही नहीं होती। लेकिन आयोजन देते समय सपूर्ण खेल आयोजन के लिए किया गया अनुमानित बजट १८०० करोड़ रू से बढक़र अब ८० हजार करोड़ रू. से अधिक हो जाने से जिसका मुख्य कारण कीमतों में वृद्धि न होकर वृहद भ्रष्टाचार होने के कारण चर्चा में यह विषय आया है। भ्रष्टाचार की कुछ बानगी जो लगातार टीवी चैनलों और समाचार पत्रों में आई है उसे तो देखिए फ्रिज, टीवी, स्पोर्ट्स मशीन्स आदि सामग्री जो उक्त आयोजनों में आने वाले खिलाडिय़ों के रहने, खाने से लेकर खेल की प्रेक्टिस करने के सामान जिन्हे क्र न किया जाकर उन्हे किराये पर लिया जा रहा है जिनका मात्र १५ दिन का किराया उसके कुल लागत मूल्य से कई गुना अधिक है। एक छोटा फ्रिज का मूल्य ५ से ७ हजार रुपये तक होता है उसका किराया १.३७ लाख रू से अधिक बताया जा रहा है। इससे देश के अनपढ़ आदमी (जिसका आज भी बहुमत है) का भी माथा ठनक रहा है। किराये पर लेने का बाद लौटाते समय उसे अच्छी हालत में वापिस करने का दायित्व भीहोता है जिसका अनुबंध किया जाता है। सामान वापिस न लौटाने की दशा में या अच्छी हालत में न लौटाने पर उसका मुआवजा कितना होगा? किराये की राशि को देखकर इसकी कल्पना की जा सकती है जो भी एक जॉच का विषय है जिस पर किसी का भी ध्यान नहीं गया है। भ्रष्टाचार के विभिन्न मुद्दो पर आयोजको से विभिन्न टीवी चैनलों द्वारा पूछे गये प्रश्नों का कोई समाधानजनक उत्तर आयोजकगण नहीं दे पायें है। इससे यह स्पष्ट है कि वे लोग जवाब देने की स्थिति में ही नही है। यह बात स्पष्टतः सिद्ध करती है कि उक्त खेलों के आयोजन में कराड़ो रुपये का भ्रस्टाचार हो रहा है जिसके लिए अब विभिन्न जांच एजेंसियों द्वारा जांच करने की मांग की जा रही है। अंततः सरकार ने भी संसद में यह कह दिया है कि वह किसी भी जांच एजेंसी से जॉच कराने को तैयार है। सीएजी ने अभी प्रस्तुत अपनी अंतरिम रिपोर्ट में श्री सुरेश कलमाड़ी सहित तीन व्यक्तियो को नामजद किया है। आजकल देश में यह सामान्य फैशन हो चला है कि हर्षद मेहता, तेलगी, ताबूत कांड से लेकर विभिन्न कांडो को टीवी चैनल से लेकर राजनैतिक पार्टीया, प्रबुद्ध लोग एवं संस्थाओं द्वारा जिस तीव्रता से उठाया जाता है अंततः किसी जॉच एजेंसी द्वारा जांच कराये जाने की उनकी मांग को सरकार द्वारा मान लिये जाने पर वे अपने कर्तव्य की इतिश्री मानकर मुद्दे को वही छोड़ देते है जिस कारण भ्रष्टाचार/अपराध का मुद्दा वहीं पर समाप्त हो जाता है और उस से लाभ पाने वाले व्यक्ति भी सुनिश्चित होकर घोड़ा बेचकर सो जाते है क्योंकि भारत देश में जांच प्रक्रिया जिस तरह से चल रही है उसमें आज तक एकआध अपवाद को छोडक़र जांच आयोग अपराधियों को अंतिम रूञ्प से सजा दिलाने मेंअसमर्थ रही है। एक तो उसमें इतना समय लग जाता है कि आरोपीगण से लेकर शिकायतकर्ता, आम नागरिक और उससे प्राप्त लाभार्थी भी उस घटना से विस्मृत हो जाते है। इस कारण से जब जॉच रिपोर्ट आती है तब तक मामला इतना ठंडा हो चुका होता है कि उस पर कोई एटीआर '(एक्शन टेकन रिपोर्ट) प्रस्तुत हुई है कि नहीं? और यदि प्रस्तुत हुई है तो वह वास्तव में क्रियान्वित हुई? कि नहीं यह देखने की भी कोई जहमत नहीं उठाता है। एक और यक्ष प्रश्न यहां उत्पन्न होता है कि सभी समाचार चैनल खेल आयोजन में भ्रष्टाचार की बात जरूर कर रहे है लेकिन वे आरोपी व्यक्तियो से किस चीज पर कितना भ्रष्टचार हो रहा है उसपर सीधे इंटरगेशन नहीं कर रहे है जैसे एक फ्रिज का किराया १ लाख ३७ हजार रू से अधिक दिया जा रहा है जिस के अनुबंध की कॉपी निश्चित रूप से उनके पास होगी जिस आधार पर वे आरोप लगाये गये है या उक्त अनुबंध की कॉपी आरटीआई (सूचना का अधिकार) एक्ट के अधीन ली जा सकती है। लेकिन किसी भी चैनल ने किसी भी आयोजनकर्ता आरोपी से यह नहीं पूछा कि इतना किराया दिये जाने का औचित्य क्या है। यदि सीधा प्रश्न किया जाता कि एक फ्रिज की कितनी कीमत होती है व उसका किराया १,३७,००० रुपये दिया जा रहा है वह उचित है ? तो सबंधित व्यक्ति को या तो उस किराये के तथ्य को इनकार करना होता या या वे उसे अस्वीकार करते कि इतना किराया नहीं दिया जा रहा (क्योंकि वे उसे किसी भी स्थिति में उचित ठहराने की स्थिति में नही हैं) तब वास्तव में कितना भ्रष्टाचार किसके द्वारा हुआ है, यह स्थिति जनता के बीच बिल्कुल स्पष्ट हो जाती। तब किसी जॉच एजेंसी से जॉच कराने की आवश्यकता ही नहीं होती। अतः जो काम एक मिनट में हो सकता था उसके लिए सालो समय देने की प्रक्रिया जॉच आयोग गठन के माध्यम से हो रही है जिससे यह लगता है कि समाचार एजेंसी भी सिर्ड्ड अपनी टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में इस तरह कि सनसनीखेज न्यूज दे रही है। ''आप की अदालत'' इंडिया टीवी कार्यक्रम में श्री सुरेश कलमाड़ी से भी सीधा प्रश्न श्री रजत शर्मा द्वारा नहीं किया गया, जिससे यह लगता है वास्तविक मुद्दा भ्रष्टाचार को समाप्त कर भ्रष्टचारियों को कानून की पकड़ में लाने का नहीं है? वास्तव में कई मामलों में तो जांच आयोग के गठन से लेकर उसके द्वारा अंतिम रूप से दी जाने वाली रिपोर्ट पर इतना पैसा खर्च हो जाता है जो शायद जांच किये जाने वाले भ्रष्टाचार की राशी से भी अधिक हो जाती है। समस्त आयोजनकर्तोओ का यह कथन कि यह आयोजन देश के समान से जुड़ा है अतः इसके आयोजन को सफलतापूर्वक होने देने चाहिए। इस भावना से कोई इंकार नहीं कर रहा है। भ्रष्टाचारियों केञ् भ्रष्टाचार या आयोजन की कमियों की ओर इंगित करने वाले हाथ भी यही चाहते है कि यह आयोजन सफलता प्राप्त करे व सफल होवे ताकि हम भविष्य में ओलम्पिक खेल का आयोजन करने के गंभीर दावेदार बन सके। शायद भारतीय ओलंपिक संघ का भी यही उद्देश्य आयोजन के एलॉटमेंट के समय था। सुविधाओं में कमियों की ओर इंगित करने वालो का भी यही अभिप्राय है कि समय पूर्व उक्त कमिंया दूर हो जावे। भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाने का यह मतलब नहीं है कि आयोजन रोका जाए बल्कि एक तो आयोजन समिति के जमीर को जगाया जा सके, दूसरा, आयोजन के बाद कानूनी प्रक्रिया के तहत भ्रष्टाचारियों को कानून के कटघरे के पीछे खड़ा किया जाकर भविष्य के लिए चेतावनी दी जा सके। ताकि हम अपने आपको को वास्तविक रूप से ओलिपक आयोजन के दावेदार सिद्द कर सके अन्यथा मंजिल अभी बहुत दूर है।
''सानिया मिर्जा'' का नाम कोई अंजान नहीं है न केवल भारत में बल्कि विश्र्व में भी वे कुछ लोकप्रियतम
खिलाडिय़ों में से एक है। क्योंकि क्रिकेट के बाद फुटबाल और लॉन टेनिस ऐसे खेल है जिनकी लोकप्रियता पूरे विश्र्व में है और सानिया मिर्जा अंतराष्ट्रीय टेनिस की एक स्थापित महिला खिलाड़ी है वे अभी तक की सबसे सफलतम भारतीय महिला टेनिस खिलाड़ी रही है जो विश्र्व टेनिस रेंकिग उन्होने पायी अभी तक कोई भारतीय महिला खिलाड़ी प्राप्त नहीं कर सकी। सानिया मिर्जा की शक्शियत की एक और खासियत यह रही है कि वे हमेशा विवादों में या तो स्वयं के बयानों की वजह से बनी रही या परिस्थितियों ने उन्हे विवादित बनाया। स्कर्ट पहनने के मामले में कुछ मुस्लिम संगठनों के विरोध के सबंध में उनके बयान ने काफी चर्चा बटोरी थी। जब शोहराब मिर्जा से उनका निकाह तय हुआ तब भी वह चर्चा में थी और जब निकाह टूटा तब भी वे चर्चा में रही। लेकिन अभी हाल ही में जब शोएब मलिक से उनका निकाह तय हुआ तो वे एकदम से चर्चा में आई क्योंकि शोएब मलिक से निकाह तय होने से पूर्व इसकी किसी भी प्रकार की कोई भनक समाचार पत्रों या मीडिया के जरियें किसी को नहीं थी। अचानक शोएब मलिक से निकाह तय होने से एक भूचाल सा आ गया जो स्वाभाविक था क्योंकि सानिया मिर्जा सिर्फ अपने मां बाप की संतान होने के कारण उनपर एकमात्र अधिकार उनके माता पिता का ही नहीं है बल्कि वे देश की सबसे सफलतम महिला टेनिस खिलाड़ी होने के कारण सचिन तेंदुलकर के समान देश की एक पूंजी है। उनकेञ् जीवन के हर मोड़ से जनता की भावनाओं का जुड़ा होना स्वाभाविक है और इसलिए अचानक निकाह की घोषणा हुई तब उसकी प्रतिक्रिया का होना स्वाभाविक है लेकिन बात सिर्फ निकाह की ही होती तो वह एक सामान्य बात होती लेकिन हमारे देश में आजकल जिस तरह की ''राजनीति'' चल रही है उन परिस्थितियों में शोएब मलिक से निकाह होना भारी प्रतिक्रिया का आधार बना। शोएब मलिक क्रिकेट के उतने ही उच्च सितारे है जितनी की सानिया लॉन टेनिस की, लेकिन इस कारण से प्रतिक्रिया नहीं हुई कि टेनिस का क्रिकेट से क्या संबंध है बल्कि शोएब मलिक एक पाकिस्तानी खिलाड़ी और नागरिक है शायद उससे भी ज्यादा वह पाकिस्तानी नागरिक है। यदि बात सिर्फ खिलाड़ी की होती तो दोनो खिलाड़ी है और उस बात को खिलाड़ी भावना से लेना चाहिए। खिलाडिय़ों को 'खेल' 'खेलने' देने से किसी को क्या ऐतराज होना चाहिए? लेकिन बात जब 'खेल' में भी ''सियासत'' की आ जाए जो कि आजकल आम है जैसा कि हम राष्ट्रमण्डल खेल के आयोजन में सुरेश कलमाड़ी के राजनीति के फेंके हुए पांसो को देख रहे है। जब उन्हे अमिताभ बच्चन जो कि एक राष्ट्रीय 'सम्पति' है को ब्रांड एबेसेडर बनाने में उनमें नरेन्द्र मोदी की महक पाने के कारण (वो कांग्रेस पार्टी को पसंद नहीं है), कुतर्को का सहारा लेकर उन्हे ब्राण्ड एबेसेडर नहीं बनाया गया है तब 'खेल' 'खेल' नहीं रह जाता है और 'खेल' राजनीति का शिकार हो जाता है। क्या इस देश के कुछ लोगो ने इस बात का ठेका ही ले लिया है कि वो 'खेल' को 'खेल' नहीं रहने देंगे? हर हाल में राजनीतिक अखाड़ा बनायेंगे? राजनीतिक अखाड़ा बनाये यहां तक भी ऐतराज नहीं होता यदि वे उसमें खेल की भावना को ला देते लेकिन जब व्यक्ति, संस्थाओं की राजनीति चल नहीं रही हो, तब इस तरह के मुद्दे उठाना 'उनका' 'शगल' हो गया है। अब खास मुद्दे की बात पर आ जाये। जब से सानिया मिर्जा के निकाह की घोषणा हुई तब से यह प्रश्न उठाया जाने लगा कि सानिया मिर्जा शादी के बाद किस देश की ओर से टेनिस खेलेंगी। उनके होने वाले शोहर शोएब मलिक का यह बयान स्वागत योग्य है कि सानिया शादी के बाद भी जब तक खेलना चाहे खेले। सानिया के परिवार के सदस्यों का भी यही कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में सानिया भारत का ही प्रतिनिधित्व करेंगी। ऑल इंडिया टेनिस ऐसोसिएशन ने यह कथन किया कि वे भारत की ओर से खेलेंगी जबकि पाकिस्तान टेनिस फेड्रेसन के अध्यक्ष का ये कथन आया कि वे पाकिस्तान की ओर से खेलेंगी। क्या टिप्पणीकार लोगो को इस देश केञ् और अंतर्राष्ट्रीय कानून की जानकारी नहीं है? सानिया मिर्जा भारतीय नागरिक है जब वे एक पाकिस्तानी नागरिक से शादी करने जा रही है और पाकिस्तान जाकर रहेंगी तो निश्चित रूप से वे पाकिस्तानी नागरिक हो जाएंगी और भारतीय नागरिक नहीं रहेंगी और अभी तक न ही कोई संकेञ्त है कि वे पाकिस्तानी नागरिकता नहीं लेंगी, तो क्या हम एक पाकिस्तानी नागरिक से भारत की ओर से खेलने के लिए कह सकते है? क्या यह जायज है? क्या हमारे देश में प्रतिभाओं की कमी है? या हमने यह मान लिया कि सानिया मिर्जा पाकिस्तान में नहीं रहेंगी। पाकिस्तानी नागरिकता ग्रहण नहीं करेंगी और वे एनआरआई (NRI) के रूप में भारत और पाकिस्तान दोनों जगह रहेंगी और इसलिए वे भारत की ओर से भी खेल सकती है। सुनील गावस्कर अपने समय के बेताज बादशाह रहे है जिन बुलंदियों पर वे पहुंचे थे तब क्या ऐसी कल्पना किसी ने की थी? वे तब क्यासचिन तेन्दुलकर की किसी ने कल्पना नहीं की? लेकिन वहीं सुनील गावस्कर ने सचिन की बुलंदियो को पैर छुकर स्वीकार किया। जो आज हमारे क्रिकेट के सर्वसमत बादशाह है। लेकिन आगे कोई दूसरा सचिन तेन्दुलकर नहीं पैदा होगा ऐसा कथन हमारी भारत माता की योग्यता पर प्रश्न करना है। इस प्रकार हमारे देश की भूंमि जो प्रतिभाओं की उपजाउ है जहा प्रतिभाओं की कमी नहीं है और यदि हमारा आत्मविश्र्वास बना रहेगा तो इस देश में कई सानिया मिर्जा पैदा हो जाएंगी। यदि हम इसके विपरीत स्थिति की कल्पना करें की कोई पाकिस्तानी महिला खिलाड़ी भारतीय नागरिक से विवाह करके भारतीय नागरिकता ग्रहण करती है और उसके बाद यदि वह पाकिस्तान का खेल में प्रतिनिधित्व करती है तो तब शिवसेना का क्या यह बयान नहीं आ जायेगा की भारतीय नागरिकता के कारण और भारतीय नमक खाने के कारण उसे पाकिस्तान की ओर से खेलने का क्या अधिकार है? और यदि वह पाकिस्तान की तरफ से खेलने का निर्णय लेती है तो उसे भारत नहीं (उतनी ताकत नहीं है) तो उसे कम से कम मुंबई से देश निकाला का आदेश दे देंगे। ''शिवसेना'' का इस मुद्दे पर बयान ठीक उसी तरह का है जैसा की हरियाणा की एक पंचायत ने युवक युवती के विवाह पर तुगलकी आदेश जारी किया था। हमारी यह आदत kyon पड़ गइ है कि हर चीज जो व्यक्तिञ् की 'व्यक्तिञ्गत' है उसे देश की अस्मिता व समान से जोडऩा चाहते है। यदि हम देश की सामान्य अस्मिता और इज्जत की चिंता करलें तो निश्चित रूञ्प से हम देश को कई उंचाईयों की ओर खड़ा करने में सक्षम होंगे। लेकिन यह तभी सभव होगा जब वास्तव में हम देश प्रेम की भावना से जुडऩे का प्रयास करेंगे। वैसे भी देश में विवादो की कमी नहीं है हमारा अधिकतर अत्यावश्यक समय विवादों के सुलझाने में ही चला जाता है तब हम यह タयों नहीं प्रण ले ले कि भविष्य में हम अपने तरफ से कोई भी अनावश्यक विवाद नहीं उठायेंगे जो हमारा महत्वपूर्ण 'धन' समय का अपव्यय करके हमें आगे बढ़ने से रोकता है। आईये आगे बढि़ये व यह संकल्प लीजिये कि देश जो विभिन्न आंतरिक एवं बाहरी समस्याओं से पूर्व से ही जूझ रहा है। वह 'सानिया मिर्जा' जैसे व्यक्तित्व को ब्रांड एबेसेडर बनाकर देश हित में उनका उपयोग करने का वातावरण बनाये।
"नजफ्गद के नवाब वीरू" के तिहरे (सतक के नजदीक)" की उपलब्धि आने पर संपूर्ण देश के साथ मेरी और से भी ह्रदय की गहराइयों से हार्दिक बधाईया।
"अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री, श्री एस.एम.कृष्णा का कथन की चीन द्वारा लद्दाख सीमा पर सड़क निर्माण कोई चिंता का विषय नही है।"
हमारे विदेश मंत्री का यह बयां की जब तक पकिस्तान २६/११ के दोसियो पर कोई कार्यवाही नही करता तब तक उसके साथ कोई बातचीत नही की जाएगी।"
"क्रिकेट" के साथ "राजनीति" का यह "घालमेल" आप कहेंगे क्यो ? इसका जवाब आपको आगे मिल जाएगा। पहले तो सहवाग के "तिहरे सतक (के नजदीक)" पहुँचने की बात पर चर्चा कर ली जाए।
वीरेंद्र सहवाग का "तिहरे सतक (के नजदीक)" क्रिकेट इतिहास के लिए कोई नया न होते हुए यह कई अर्थो में नया है। यह " पहला तिहरा सतक (के नजदीक)" है जो विश्व का तेज "तिहरा सतक (के नजदीक) है" २९३ रन जो ४० चौके और ७ गगनचुम्बी छक्के के मदद से बनाया गया। (जो मात्र २५४ गेंदों में) सहवाग के २५० रन भी एक रिकार्ड है इस अर्थ में की ये विश्व के सबसे तेज २५० रन मात्र २०७ गेंदों से बना है। एक दिन में सबसे ज्यादा रन का रिकार्ड यद्यपि डान ब्रेडमेन (३०९) एवं तत्पश्चात डब्लू हेमंड (२९५ रन) का है लेकिन तब एक दिन में ९० ओवर नही १२० ओवर खेले जाते थे उसे देखते हुए सर डान ब्रेडमेन के उक्त रिकार्ड से भी यह ज्यादा प्रभावशील सहवाग की उप्लोब्धि है। सहवाग की इसी उपलब्धि के कारन ही लगभग ४० प्रतिसत से अधिक का अकेले का योगदान बना भारत अपने ७६ वर्ष के टेस्ट इतिहास में सर्वाधिक (७२६) रन बना पाया।
यह " तिहरा सतक (के नजदीक )" कोई ऐसे-वैसे गेंदबाज के विरुद्ध नही बल्कि विश्व क्रिकेट के सबसे प्रमुख एवं सफल गेंदबाज मुझैया मुरलीधरन जिसने विश्व क्रिकेट में सर्वाधिक विकेट (७९२) लिए है, के विरुद्ध बनाया है। सहवाग के इस रोद्र रूप पर श्रीलंकाई कोच श्री बेलिस का यह कथन संपूर्ण स्थिति को अपने आप स्पष्ठ करता है की "दुसरे दिन हमने योजना बदली, हमने अपने गेंदबाजो की लाइन एवं लेंथ में बदलाव किया, लेकिन वह जहा चाहे वही हमारे गेंदबाजो की धज्जिया उड़ा रहा था। यह उन दिनों में से एक था, जबहमें२०क्षेत्ररक्षकोकीजरुरतथी क्योंकि वह गेंद को शानदार ढंग से खेल रहा था।"
लेकिन इस सबसे ज्यादा शायद सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की शायद अन्य समालोचक या तो उकता तिहरा सतक (के नजदीक) की चमक में अन्य तथ्य देख नही पा रहे है या इस "तिहरे सतक (के नजदीक )" के पीछे छुपे हुए उस वातावरण को भूल गए है वह यह की श्रीलंका के ३९३ रा के विशाल स्कोर से उत्पन्न हुए दबाव के बावजूद प्रारंभिक बल्लेबाज के रूप में भरी वातावरण के रहते, दबाव में आए बिना, व इससे भी ज्यादा कमर में दर्द के बावजूद पुरे होश-हवास में, चारो दिशावो में, चौके-छक्के मारकर "तिहरे सतक" के नजदीक" को पुरा किया जिसके लिए उनके द्वारा दिखाई गयी सहस एवं दृढ इक्षा शक्ति को मई नमन करता हु। 'वीरू' द्वारा विपरीत परिस्थितियों में दिखाए गयी इस सहस, अंगद सामान पी ज़माने वाली दृढ़ इक्षाशक्ति एवं ताकत की ही " हमारी भारतीय राजनीती" में भी आवश्कता है।
अब आप समझ गयी होंगे की मैंने क्यों प्रारम्भ में क्रिकेट व राजनीती के बीच सम्बब्ध मिलाने का प्रयास किया। हमारे विदेश मंत्री जब यह कहते है की हम पाकिस्तान से तब तक कोई बातचीत नही करेंगे जब तक वह आतंकवादियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नही करता अर्थात सरकार द्वारा यह मानने के बावजूद की पाकिस्तान के यहाँ आतंकवादी केम्प चल रहे है, पाकिस्तान सरकार उन्हें शाह दे रही है जिसके फलस्वरूप ही २६/११ की मुंबई की घटना या इसके पूर्व मुंबईबोमब्लास्ट या कश्मीर में कई आतंकवादी घटनाए हुई, लेकिन हम उसे रोकने के लिए कोई प्रभावी कार्यवाही नही करेंगे बल्कि वह कार्यवाही हम पाकिस्तान के 'विवेक' पर ही छोड़ देंगे और हम अपनी पुरी जिंदगी उसके "विवेक" को जगाने में ही लगा देंगे क्योंकि हमारे बातचीत न करने से वह आतंकी कार्यवाही बंद तो नही कर देगा ? उक्त कथन के द्वारा क्या हम पाकिस्तान को हमारे ऊपर आतंकी कार्यवाही करने का लाइसेंस असीमित अवधी के लिए तो नही दे रहे है ? क्योंकि जब तक हम अमेरिका के सामान दोषी व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही करने की निश्चित समय तय कर चेतावनी नही देंगे तब तक पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज आएगा ऐसा सोचना वास्तविकता के विपरीत होगा। क्या हम उस सवैधानिक व्यवस्था के निवाशी नही है, जहा पर कोई नागरिक को अपराध करने पर कार्यपालिका को न्यायपालिका के मध्यम से उसे सजा दिला कर दोषी व्यक्ति को दण्डित कर पीड़ित व्यक्ति को मानसिक सांत्वना देने का अधिकार एवं कर्तव्य है, तब हम क्या उक्त अपराधी को वही छोड़ देते है, इस आशा के साथ की वह स्वयं अपराध न करे या अपराधी होने दंड स्वयं भुगते, तब हम अंतररास्ट्रीय मामले में जहा अंतररास्ट्रीय मामले में जहा अंतररास्ट्रीय कानून विद्यमान है, देश की अस्मिता को चुनौती देने वाले देशो पर क्यो कार्यवाही नही करते है। जिस प्रकार भारतीय संविधान में एक नागरिक को अपने स्वरक्षा का अधिकार है उसी प्रकार अंतररास्ट्रीय कानून में भारत को भी अपने आत्मसम्मान की रक्षार्थ दुश्मन देश पर हमला करने का अधिकार है इसके लिए भारत सरकार के अंतर्राष्ट्रीय कानून पढने की आवश्यकता नही, ज़रा सी नजर अमेरिका की तरफ़ देख लीजिये किस कानून के पालनार्थ है? वियतनाम से लेकर अब इरान तक के मामले में अमेरिका " सहवाग" प्रवृत्ति को ही अपना रहा है फ़िर हम क्यो राजनीती में "सहवाग" नही बन पा रहे है वह समझ से परे है।
जिस तरह सहवाग ने हर तरह की गेंद चाहे वो फुलटास हो, आफ ब्रेक हो, गुगली हो या कितनी ही भुमव्दर क्यो न हो, अपने शौर्य, पराक्रम के साथ "एकलव्य" सामान लक्ष को निर्धारित कर, प्रत्येक गेंद को सही दिशा देकर उक्त रनों का पहाड़, टीम के लिए खड़ा किया वैसा ही देश का राजनितिक नेतृत्व, दुश्मनों द्वारा फेंकी जा रही गुगली और घुमावदार बाल को क्यो नही, अपनी तीनो सेना के शौर्य पराक्रम जिसकी क्षमता में कोई संदेह नही है, के द्वारा देश की विदेश निति की, रक्षा निति की और आतंरिक दशा की गेंद को सुद्रढ़ करने के लिए सही दिशा नही दे पा रहा है इसीलिए यहाँ शीर्ष स्तर पर एक 'सहवाग' की आवश्कता है न की रिमोट से चलने वाले कटपुतली व्यक्तित्व की। यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा जिस तरह अमेरिका अपने रिमोट से कई देशो के शासनाध्यक्ष को चला रहा है अमेरिका की तरफ़ तुक-तुक निगाहे लगाये देखते रहता है।
जब हमारा पहाड़ जैसा "राहुल" द्रविड़ कई गेंदे बगैर खेले निकल देता है, लेकिन तब भी हमारे कुछ समीक्षक उसे मजबूत 'दीवार' कहते नही थकते है। देश की राजनीती का भी यह दुर्भाग्य है। देश में भी "राहुल " बगैर गेंद मारे कई जगह खड़े है और देश उनकी उपलब्धियों के लिए चिरोरी गिन रहा है। क्या बगैर खेले कुछ उपलब्धि कभी हो पाई है, इसीलिए यदि कुछ उपलब्धि प्राप्त करना है तो कुछ न कुछ अवश्य करना पड़ेगा और इसीलिए जब आज 'टेस्ट क्रिकेट' जो की पिछले कुछ समय से मरणासन्न की स्थिति में जा रहा है तब उसके गति देने सहवाग जैसे खिलाड़ीयो ने वनडे और टी-२० के गति के समान उसे पुन: वह गति प्रदान करने का प्रयास किया है तब यही राजनितिक दिशा की आवश्कता आज की भारतीय राजनीति के शीर्षस्थ लोगो से है।
विपरीत परिस्थितियों में 'अकेले' सहवाग "तिहरा सतक (के करीब )" पहुँच सकता है तब भारतीय राजनीती में विपक्षी दल क्यों नही 'वीरू ' बनकर वीरता नही दिखा सकते है यह भी एक प्रश्न है ? क्या यह सरकार का ही दायित्व मात्र है ? देश के अस्मिता के प्रति सजग होने का क्या सरकार के विपरीत खड़े समस्त दलों का भी उतना ही दायित्व नही है ? ठीक उसी प्रकार टीम के जब बल्लेबाज फेल हो जाते है तब गेंदबाज अपने सक्रियता, और सक्षमता को और पैनी कर टीम को वापस मैदान में ले आते है।
यदि क्रिकेट टीम की यह भावना भारतीय राजनीतिज्ञों में भी आ जाए तो वह दिन दूर नही जब न केवल "आजाद कश्मीर" भारत का पुन: अभिन्न अंग होगा बल्कि "अखंड भारत" की (हिंदूवादी संगठनो) की परिकल्पना भी पूर्ण होगा।
अंत में चूँकि यह लेख क्रिकेट से प्रारम्भ हुवा और क्रिकेट के प्रति श्रधेय स्वर्गीय प्रभाष जी का लगाव उनके जीवन के अन्तिम क्षण तक था यह सब हजारो भारतीय क्रिकेट प्रेमी जानते है जिनकी क्रिकेट पर त्वरित टिप्पणी के अतिरिक्त "कागत कोरे" (जनसत्ता) मन के अन्दर तक छू जाने वाली होती थी, का मैं भी हजारो भारतियों के साथ प्रशंसक रहा हु। यदि आज प्रभाष जी जीवित होते तो उनकी कलम अभी वीरू के "तिहरे सटक (के समीप)" से भी तेज होती जो "तिहरे सटक" में जो मात्र ७ रनों की कमी रह गयी की पूर्ति भी कर देती। आज इस अवसर पर मैं उन्हें सत-सत नमन कर यह लेख उनकी श्रद्धा में समर्पित करता हूँ।
‘‘स्वतंत्र विचार’’ में शामिल प्रविष्ठियां लेखक के नीजी विचार है। सम्पूर्ण लेख या कुछ भाग अन्यत्र प्रकाशित किया जाने पर लेखक को श्रेय दिया जाना श्रेष्ठकर होगा।