‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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रामलला बैठे टाट तलें तो मैं कैसे होली खेलूँ ?

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 रामलला बैठे टाट तलें तो मैं कैसे होली खेलूँ ?
जन्म भूमि पर नहीं है मंदिर, कैसे होली खेलूँ ??

                  सम्पूर्ण भारत भू पर लिखा नाम राम का
                  कण कण धरा उसकी नभ भी श्री राम का

                 पर क्यो कैसे अंतर्मन मन में पीड़ा रख लूँ ?
                 जीनें जन्मा, मैं क्यों जहर का प्याला पी लूँ ??

पर आज लाख टके के प्रश्न को मैं कैसे भूलूं ?
जन्म भूमि पर नहीं है मंदिर, कैसे होली खेलूँ ??

                आज इस कलयुग में प्रभु श्रीराम नहीं अब आयेंगे!
                           संघ शक्ति का यह युग !श्रीराम क्यों धनुष उठाएंगे?
रामलला बैठे टाट तलें तो मैं कैसे होली खेलूँ ?
जन्म भूमि पर नहीं है मंदिर, कैसे होली खेलूँ ??

                  सम्पूर्ण भारत भू पर लिखा नाम राम का
                  कण कण धरा उसकी नभ भी श्री राम का

                 पर क्यो कैसे अंतर्मन मन में पीड़ा रख लूँ ?
                 जीनें जन्मा मैं क्यों जहर का प्याला पी लूँ ??

पर आज लाख टके के प्रश्न को मैं कैसे भूलूं ?
जन्म भूमि पर नहीं है मंदिर, कैसे होली खेलूँ ??

                आज इस कलयुग में प्रभु श्रीराम नहीं अब आयेंगे!
                संघ शक्ति का यह युग श्रीराम क्यों धनुष उठाएंगे?
               
                इस भारत  भू  पर अब हमें ही परशुराम  होना होगा !
                अयोध्या के टाट हटा वास्तु भव्य हमें ही करना होगा !!

 रामलला बैठे टाट तलें तो मैं कैसे होली खेलूँ ?
जन्म भूमि पर नहीं है मंदिर, कैसे होली खेलूँ ?                 

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अरविन्द कौन?

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व्यंग्य 
स्वामी रामदेव कौन?
प्रसिद्द योगगुरु और सामाजिक कार्यकर्ता..
अन्ना है कौन?
स्वामी रामदेव के द्वारा देहली लाये गए 
महारास्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता,,
अरविन्द है कौन?
एक सेवानिवृत सरकारी अधिकारी,
एक एनजीओ संचालक..
---
लोकपाल जनआन्दोलन के बाद .
अन्ना कौन?
प्रसिद्द सामाजिक कार्यकर्ता,
अरविन्द है कौन?
अन्ना टीम के मुख्या सदश्य.
लोकपाल जनआन्दोलन,
अरविन्द कौन?
अरविन्द अन्ना के सारथी
अरविन्द मशहूर समाजसेवी
अरविन्द अन्ना के हनुमान
अन्ना ने ये कहा, 
अन्ना ने वो कहा, 
अन्ना और अरविन्द ने ऐसा-वैसा कहा..
----------
अन्ना और अरविन्द की राहे जुदा 
निष्कर्ष 
स्वामी रामदेव कौन?
प्रसिद्द योगगुरु और सामाजिक कार्यकर्ता..
अन्ना कौन?
प्रसिद्द सामाजिक कार्यकर्ता,
अरविन्द कौन?
एक मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता, 
इंडिया अगेंस्ट करप्सन के डाइरेक्टर
अन्ना के उत्तराधिकारी 
अन्ना और स्वामी रामदेव जी के आन्दोलन से 
तपकर निकली एक ईमानदार
राजनैतिक पार्टी के मुखिया 
एक भावी प्रधानमन्त्री पद के
सुयोग्य उम्मीदवार!!
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बेचारा! पुतला कही का!

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रोज जलता है, फिर भी जिंदा है। खामोश रहता है, फिर भी चर्चाबिंदु है।

कृष्णा बारस्कर:
                          कुछ दिन पहले मैं एक नामी गिरामी संगठन के साथ स्वदेशी आंदोलन के अंतर्गत एफडीआई (देश के खुदरा व्यापार में सीधा विदेशी निवेश) के विरोध में पुतला दहन कार्यक्रम में होकर आया हूं। लगभग 100-150 लोग जमा हुए। थोड़ी देर नगर के चौक-चौराहो से गाड़ियो की रैली निकाली अंत में नगर के मुख्य चौराहे पर जमा हुए। वहां सरकार, एफडीआई, महंगाई के विरोध में खूब नारे लगाये गये।

कुछ विदेशी सामानों के ढेर जमा किये गये और उसके बाद एक चार-पहिया वाहन से एक पुतला निकाला गया। उस पुतले के साथ ही बहुत सारे विदेशी खुदरा सामान जैसे कि शैंपू, साबून, बिस्कुट, चॉकलेट, चिप्स, कुरकुरे, पेप्सी, कोक आदि भी जमा किये गये।

पुतले सहित समस्त सामग्री चौक के बीचोंबीच रखी गई, उसे जूतों की माला पहनाई गयी। विदेशी सामान का प्रतीक होने के कारण उसपर खूब गुस्सा निकाला गया! कुछ लोग तो एफडीआई रूपी उस पुतले पर गुस्से से इतने अधिक लाल-पीले थे कि उन्होने दो चार जूते-चप्पल-सेंडिल भी उस पुतले पर धर दिये। कुछ लोगो का मन केडबरी डैरीमिल्क (चॉकलेट) पर ललचाता भी नजर आया।

कुछ देर तक भाषण बाजी हुई, फोटोग्राफी हुई और एक बॉटल से पेट्रोल निकाला गया और पेट्रोल डालकर उसे जला दिया गया। धू-धूकर जलते विदेशी सामान और एफडीआई का रूप धरे पुतले को देखकर लगा कि मानों एफडीआई नाम का जिन्न आज जलकर भष्म हो गया और अब वह अपने देश के आम नागरिको को नहीं डराएगा और न ही कोई विदेशी कंपनी अब देश में मल्टीशॉपिंग स्टोर खोलेगी।

एक पुतला एक गधे तुल्य महानः-
फिर मुझे याद आया कि कुछ दिन पूर्व ही मैं कई अन्य संगठनों के साथ महंगाई, भ्रष्ट्राचार, आतंकवाद, कुशासन आदि-आदि कुरीतियों के पुतले बनाकर जला चुका हूं। मैं सोचता हूं कि एफडीआई, महंगाई, भ्रष्ट्राचार, आतंकवाद, कुशासन तो हमारी निकम्मी सरकार की ही देन है, उसीका किया धरा है फिर उस बेचारे पुतले का क्या कसूर? उसे क्यूं बार-बार जलाकर तकलीफ दी जाती है।

जिन लोगो का प्रतीक बनकर वह लात-जूते खाता है, गुस्सा झेलता है, जल-जलकर इतना दर्द और अपमान बरदास्त करता है? क्या वे बुराईया या लोग पुतले क साथ कभी जले है? या क्या कभी उन बुराईयों का खात्मा हुआ है? जिस विदेशी सामान की हम होली जलाते है, घर वापस पहुंचकर क्या हमने उनका बहिस्कार किया है कभी? सवाल तो बहुत है जवाब मिलते ही कहा है? मिले भी तो कम ही मिलते है। मुझे तो आज के जमाने में ‘पुतला’ उसी महान परोपकारी ‘गधे’ तुल्य नजर आता है।

गधा वह महाप्राणी है, जिससे सामान्यतः किसी भी व्यक्ति चाहे वह निकम्मा हो, कम दिमाग वाला हो, आलसी हो, नालायक हो चाहे मुर्ख हो उसकी तुलना कर दी जाती है। वो बेचारा बिना किसी ना-नुकुर के परस्वार्थ भावना से हमारे मान सम्मान का खयाल करके अपनी बेईज्जती बरदास्त कर लेता है।

जबकी सब जानते है कि आज दुनिया का सबसे मेहनती प्राणी गधा ही है, यकीन नहीं आये तो कोई उसके इतना सामान ढोकर दिखाए! उसके इतना अपमान सहकर दिखाये? फिर भी गधा तो गधा ही है न। चुंकि वह शहनशील है, धैर्यवान है, और समझदार भी है, इसलिए वह सबके बदले की उलाहना खुद सुनकर भी अपना काम करता रहता है।

खयाल एक और महान पुतले काः-
फिर मेरे खयाल में आया कि हमारे देश में एक और महान ‘पुतला’ भी तो है। जो देश के पूरे राजनैतिक धरातल का केन्द्र बिन्दु है। जो एक गठबंधन सरकार का प्रतीक बनकर देश की जनता के न जाने कितने ही जूते-चप्पल-सेंडिल खा रहा है। उसे एफडीआई, महंगाई, भ्रष्ट्राचार, आतंकवाद, कुशासन के प्रतिशोध में जनता जूते-चप्पल पहनाकर रोज जलाती रहती है। फिर भी देखो ढीठ! कितनी ही बुराईया, गालिया खाकर भी वो अपने साथियों की ढाल बना हुआ है।

बिल्कुल उसी महान ओरिजनल ‘गधे’ की तरह जो सबसे मेहनती होते हुए भी भ्रष्ट्राचारियों, निकम्मों, कम दिमाग वालोे, आलसियो, नालायकों, मुर्खो, बद्दिमाग आदि-आदि लोगो तुलना के अपमान का बोझ सहकर उनकी ढाल बना रहता है। चलो... फिर भी ये ‘गधा’ उसी महान ‘गधे’ की तरह सहनशील है, धैर्यवान है और समझदार होने के कारण अपने सब साथियों के बदले की उलाहना खुद सुनकर भी अपना काम करता रहता है। वैसे इसने किया ही क्या है? बेचारा! सोनिया माता का ‘गधा’! पुतला कही का!

अब आते है हकीकत के धरातल देखेः-
हम जिस स्वदेशी आंदोलन में शामिल हुए थे वहा से हमें जिस फोन के माध्यम से बुलाया गया। वो मोबाईल फोन था नोकिया (फिनलैंड की कंपनी का उत्पाद), दोबारा जिस फोन से रिमाइंड कॉल किया गया वह सेमसंग (जो कोरिया की कंपनी) का था। कमाल की बात यह थी कि उनमें से एक मोबाईल में वोडाफोन (इंग्लैण्ड) की सिम लगी थी। जो मोबाईल फोन हमने पकड़ रखा था वो था चाईनीज फोन जिसका कोई ब्रांड नाम नहीं होता, हां उसमें सिम जरूर रिलायंस (स्वदेशी) की थी।

जिस गाड़ी से मैं रैली में भाग लेने गया वो गाड़ी सुजुकी जियस (जापान) की थी। उसमें डाला गया पेट्रोल विदेश (सऊदी अरब) से खरीदा जाता है। बहुत से लोग जिन गाड़ियों पर सवार थे वे गाड़िया हीरो-होंडा, हांेडा (जापानी), सुजुकी (जापानी), मारूती (जापानी), यामाहा (जापानी) आदि विदेशी थी।

जिस गाड़ी में पुतला लाया गया वह मारूती (जापानी कंपनी) द्वारा निर्मित कार थी। जो लोग उसमें शामिल हुए थे उनमें ज्यादातर के पहने हुए जीन्स, टी-सर्ट और कपड़े विदेशी (अमेरिकी स्टाईल) थे, उनके हाव-भाव, चाल-ढाल, पहनावा, दिखावा सब विदेशी टाईप का! रैली में मुझे तो हर चीज जलाने लायक ही लगी।

बस,,,, एक ही वस्तु दिखी जो सुद्ध स्वदेशी थी और जलाने लायक भी नहीं लगी, वह थीः- देशी चिंदियो से बना ‘पुतला’! हमारे  म..न...मो...ह...न सिं...ह.. का।

(आखो देखा सत्य लेकिन व्यंग)
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वेलेंनटाइन्स पर वादा.....

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न घांव भर सकूंगा
न मरहम कर सकूंगा, पर
कोई जख्म जो लगा हो,
वो दर्द मैं सहूंगा।
हर अंधियारी रात तले
देख सुनहरा सवेरा।
बस थामले विश्वास की डोर
दिन की छाया हूं तुम्हारी
रात, हमसाया बन रहूंगा।

न गिला करूंगा,
न सिकायत तुम्हारी,
हर-पल, हर-कल, 
हर-कदम, हर-जगह
जहां तलक नजर चले
साथ चलूंगा,
बस विश्वास बनाये रखना,
दिन की छाया हूं तुम्हारी
रात, हमसाया बन रहूंगा।
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कालाधन? नही.. नीयत का कालापन हूँ मैं

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कहते हो काला हूँ मैं!
न काला रंग है मेरा
न काला मन है
न काले कर्म है मेरे
न इरादों मे कालापन है
क्यूं कहते हो काला हूँ मैं?

किसी की जरूरत हूं
तो किसी की शान हूँ,
मेरी नजर छोटा तू, न वो बड़ा
तेरी हूं लक्ष्मी, तो उसका भी मेहमान,
यूं दबाके रोक न गठरी में
देश की रगो का बहता लहू हूं मैं
बहने दे मुझे अविरल, हिम से सागर तक  

कहते हो काला हूँ मैं!
कसूर मेरा क्या है?
कमीं तो है हम दोनों के रिस्ते में
मैं तो एक सिक्के के दो पहलूं हूं बस
ईमानदारी से कमाया तो खून-पसीना
जहां बेईमानी तेरी वहां 'कालाधन' हूं मैं!
बस अब तुझे समझना होगा,
मानना होगा
काला मेरा रंग या मैं नहीं,
तेरी नीयत का कालापन हूं मैं।
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एक आम बेरोजगार आंदोलनकारी

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मुझे भी चाहिए दिल्ली का बिल
मुझे भी चाहिए भारत रत्न
मैंने भी की है भूख हड़ताल
चिल्लाया मैं भी भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार
मेरी आवाज डरा न पायी
क्यूंकि मीडिया के कान में जू न आई
तुमने धीरे से आवाज लगाई
गूंजी-गली-गली जैसे सहनाई
तुम हो सच्चे भारत रत्न अन्ना भाई
मीडिया और तुम हो भाई-भाई
मुझको भी उनका मित्र बना दो
जैसे तुमने की मेरी सेटिंग करा दों
भूषण बेटा-पापा को हीरो बनाया
मुझे तो बस उनका चपरासी बना दो
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रंगों की मस्ती

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हर तरफ ये कैसी मस्ती छाई है |
सबके चेहरे में प्यारी सी रंगत आई है |
सारी सृष्टि  रंगीन होती नज़र आई  है |
अरे  ये सब तो होली ही लेकर आई है |

मन तो मेरा भी इस कदर बेताब है |
कुछ को रंगने , कुछ से रंगने को बेकरार  है |
न जाने अब कितना और इंतजार है |
लगता है मेरी तरह हर दिल बेकरार है |
चलो अब टोली में हम भी रम जाएँ |
थोडा इसे और थोडा उसे भी रंग आयें |
न जाने फिर ये पल लौट  के कब आयें |
अपने अरमान आज ही पूरा कर आयें |

क्यु न कृष्ण की राधा हम ही  बन जाएँ |
राधा बन - बन के कृष्ण को हम तडपायें |
वो तो हर बार नए - नए रूप से रिझाता है |
आज हम भी उसी रूप में क्यु न ढल जाएँ |

बच्चों के जैसे आज हम क्यु न हो जाएँ |
सबकुछ भुला के उस में ही हम क्यु न खो जाएँ |
सारी दुनिया से कुछ पल को बेखबर हम हो जाएँ |
रंगों की प्यारी सी दुनियां में इस कदर हम खो जाएँ |

सबसे प्यार से मिले , सबको प्यार ही हम दें |
बच्चो को प्यार , बड़ों का आशीर्वाद भी लें |
इन  रंगों को अपनी यादों में एसे बसा हम लें |
इन्हीं रंगों से अपना जीवन भी रंगीन बना लें |

आप सभी को होली की बहुत - बहुत शुभकामनायें |
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संसार

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ये अपने विचारों का द्वन्द है , 
जीने दो उसको जो स्वछन्द है |
निराधार है सारी बातें ,
जिसमें  कोई सार  नहीं |
नाम के हैं सारे रिश्ते ,
जिसमें प्यार नहीं , सत्कार नहीं |
क्या बतलाएं उन जख्मों को ,
जिनके भरने की तो बात  नहीं |
हाहाकार है सारी दुनियां में ,
यहाँ जीने के आसार नहीं |
इस रंग बदलती दुनिया में ,
कौन  एसा है जो बेकार नहीं |
हाय - हाय का शोर है हरतरफ ,
कोई कोना भी आबाद नहीं |
बात कहने से बात बिगडती है ,
बातों में अब शिष्टाचार नहीं ,
कसम  खा लेने  भर से ...
मिट सकता भ्रष्टाचार नहीं |
हर तरफ नफरत की आग लगी है ,
जिसका कोई पारावार नहीं |
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परिचय

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ये जो आस्मां में 
बादलों के साये हैं |
धरा से अस्मां में
किस कदर ये छाए हैं |
कितने  हक से
दोनों जहाँ में रहते हैं |
बरसते तो हैं  ये  
उमड़ - घुमड़  झूम के ,
पर फिर उनके ही 
दामन से लिपट जाते हैं |
कैसा  रिश्ता है आपस में
दोनों का इस कदर की ,
बिछुड़ने पर भी हर बार
मिलने को ये तरसते हैं |
गरजते  हैं बरसते हैं |
न जाने एक दूजे से
क्या ये कहते हैं |
फिर भी एक ही  आशियाँ 
में जाके  ये रहते हैं |
धरा  की प्यास ये  
बुझाते  हैं |
प्रकृति को हरा - भरा
भी बनाते है |
सारी सृष्टि को नया जीवन
दे कर... निस्वार्थ भाव...
अपना परिचय बतलाते हैं |
कई - कई बार इस कदर
ये खुद को मिटाते हैं
पर फिर से उसी आस्तिव
को पाने  उसी रूप में
 आ जाते हैं |

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अंदाज़ अपना - अपना

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क्यु हरदम टूट जाने की बात करती हो |
नारी हो इसलिए बेचारगी की बात करती हो |
क्या नारी का अपना कोई आस्तिव नहीं ?
एसा कह कर खुद को नीचे गिराने की बात करती हो |
खुद को खुद ही कमजोर बना , ओरों पर क्यु 
इल्ज़ाम  लगाने जैसी बात कहती हो ?
खुद को परखने की हिम्मत तो करो |
कोंन कहता ही की तुम ओरों से कम हो ?
एसे तो खुद ही खुद को कमजोर 
बनाने की बात कहती हो |
नारी की हिम्मत तो कभी कमजोर थी ही नहीं |
ये तो  इतिहास के पन्नों में सीता , अहिल्ल्या 
सती सावित्री  की  जुबानी में  भी  है |
फिर क्यु घबरा कर कदम रोक लेती हो ?
अपनी हिम्मत को ओरों से कम क्यु 
समझती हो |
अपना सम्मान चाहती हो तो पीछे हरगिज़ 
न तू हटना |
पर किसी को दबाकर उपर उठाना एसा भी 
तू हरगिज  न करना |
इस सारी सृष्टि में सबका अपना बराबर 
का हक है |
खुद के हक को पाने के लिए किसी को भी 
तिरस्कृत तू हरगिज़ न करना |
ये नारी तू प्यार की देवी है |
इस नाम को भी कलंकित तू 
कभी न करना |
प्यार से अपने हिस्से की गुहार
तू हर दम करना |
अपने साथ जोड़ना ... किसी को 
तोड़कर आगे कभी मत बढ़ना |
साथ लेकर चलने का नाम ही समर्पण है |
नारी के इसी प्यार पर टिका सृष्टि 
का ये नियम भी है |
इसको बचा कर रखना इसमें तेरा , 
मेरा और सबका  हित भी है |
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सिर्फ अपना दर्द ही अपना

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चारों तरफ क्रंदन ही क्रंदन 
इन्सान इतना  बेरहम
कब से हो गया |
किसी के दर्द से जैसे 
उसका कोई वास्ता ही नहीं |
अपने दर्द में इतनी झटपटाहट 
और दुसरे का दर्द ...
सिर्फ एक खिलखिलाहट |
फिर क्यु अपने लिए ... दुसरे की 
आस लगता है वो ?
जब दुसरे के दर्द तक को तो 
सहला नहीं पाता है वो |
क्या उसकी सहानुभूति 
सिर्फ अपने तक ही है ?
क्या दूसरों के लिए उसके 
दिल में कोई जगह ही नहीं ?
शायद इसी वजह से 
इतना दर्द है सारे जहान में  |
इतनी चीख - पुकार है 
सारे संसार में |
बस सब इसी इंतजार में हैं शायद ...
की कोई तो मेरी दर्द भरी 
आवाज़ को ...सुन पायेगा |
और देखकर मेरे हालत को 
वो प्यार से मरहम लगाएगा |
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मौन सृजन

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   इसरा अबदेल

                          क्या होता है ये सृज़न ? क्या तोड़ - फोड़ , शोर - गुल के माध्यम से ही इसे लाया जा सकता है | नहीं... सृज़न जब भी  होता है तो अधिकतर मौन  के रूप में ही आता है जिसका असर हर तरफ नज़र आता है और ये सब कर पाना कोई कठिन नहीं क्युकी इतिहास तो  बनता और बिगड़ता रहता है | इतिहास को बनाने और बिगाड़ने का सबसे बड़ा हाथ हम इंसानों को ही जाता है | अगर हम दिल में ठान ले की हमने कुछ एसा करना है जिससे हम एक नया इतिहास रच दे तो एसा करना बहुत बड़ी बात नहीं हमें  कुछ एसा करना होगा की इन्सान खुद हमसे जुड़कर आगे बढ़ने और हमारा साथ देने को मजबूर हो जाये | ये काम भीड़ भरी जनता के सामने भाषण देने से ज्यादा खामोश रह कर कुछ एसा रचने से होगा जिससे किसी को नुकसान भी न हो और हम अपने काम में सफल भी हो जाये क्युकी भीड़ के शोर में वो ताक़त नहीं होती जितना  शांत रहकर सृजन करने में है | मौन सृजन में इतनी ताक़त है की वो सत्ता का तख्ता पलटने तक की ताक़त रखती  है | 
                           रगों में दौड़ने  फिरने के हम नहीं कायल 
                         जब आँख से ही न टपके तो फिर लहू क्या है |
              कहते हैं ये शेर मिर्ज़ा ग़ालिब ने  बहुत समय पहले हिंदुस्तान  में कहा था पर एसा लगता है की मिस्र  की काहिरा विश्वविद्यालय की छात्रा ' अस्मां महफूज़ ' ने भी इसे जरुर पढ़ा  होगा जिसने इसे पढ़कर मिस्र में एक क्रांति लाने की ठान ली | वो वहां के लोगों की गरीबी , बेरोजगारी , भ्रष्टाचार और मानवाधिकारियों के हनन से त्रस्त मिस्र के लोगों की सरकार के खिलाफ बगावत की अग्रदूत बन गई थी अस्मां | अपने इंटरव्यू में उसने कहा था की हाँ में नाराज़ थी ___सबके मुहं  से ये सुनती थी की हमें  कुछ करना चाहिए पर कोई कुछ नहीं कर पा रहा था | इसलिए एक दिन मैनें  फेस - बुक पर लिख डाला की दोस्तों ____ मैं आज तहरीर चौक  पर जा रही हूँ मैं वहां अपना अधिकार मागुंगी | यह 25 जनवरी की बात है वह कुछ लोगों के साथ वहां गई  पर  उसे वहां प्रदर्शन करने नहीं दिया | उसके बाद उसने एक विडिओ बनाई जिसमें  लोगों को उनसे  इस मुहीम में जुड़ने की अपील थी और इसे ब्लॉग और फेसबुक  पर डाल कर प्रसारित किया ये विडिओ जंगल में आग की तरह फैल गया और एक बार फिर मौन सृजन हुआ |
                  अस्मां की तरह मिस्र की अहिंसक क्रांति के दौरान कई नायक जन्में जिन्होनें सोशल मिडिया का इस्तेमाल कर इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा डाला | गूगल के अधिकारी ' वेल गोमिन ' और मिस्र की एक निजी कम्पनी में मानव संस्थान समन्वयक रही ' इसरा अबदेल फातेह ' इन्ही लोगों में से है | इसरा अबदेल ने 2008 में मिस्र के लोगों को फेसबुक की एहमियत से पहली बार परिचित कराया | उस वक़्त सिर्फ 27 की इस लड़की ने वह कारनामा कर दिखाया  था जिसे वहां के विरोधी दल नहीं कर पा रहे थे | इसरा के फेसबुक पेज ने चुपके से 70 ,000 लोगों को अपने साथ जोड़ा , जिन्होंने देश में पहली सार्वजनिक हड़ताल को सफल बनाने में खास भूमिका निभाई | नतीजा ये हुआ की इसरा को गिरफ्तार कर लिया गया | करीब दो हफ्ते बाद इसरा रिहा हुई और इसका नाम ' फेसबुक गर्ल ' के नाम से मशहूर हो गया |
                    किसी खास मुद्दे पर कैंपेन चलाना , क्रांति को हवा देना ये सब नेटवर्किंग के जरिये एक मौन सृजन ही तो है , जो हैती  से मिस्र और भारत तक ये मौन  रहकर अलग -अलग उदाहरणों के साथ सोशल मिडिया की ताक़त हमें दिख रही है और इसकी चुप्पी रोज़ नए - नए आयाम गढ़ती  जा रही है | हाँ इसी का नाम तो मौन  सृजन है जो खामोश रह कर इतिहास को बदलता जा रहा है |   

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परिवर्तन ही नियम

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किसी के जाने से कारवां रुक नहीं जाता |
किसी के आने से इतिहास कब बदलता है |
जिंदगी एक प्रवाह है न रुका है न रुकेगा | 
चलता ही रहा है और चलता ही रहेगा |
अगर एक तरह से जी कर थक चुके हो तुम 
तो जीवन को जीने का अंदाज़ बदल डालो |
उसको जीने के मायने ही बदल दो तुम  |
इन्सान तो अपने  आप में खूबियों का 
एक भरपूर पुलिंदा है |
वो जब चाहे गाँधी , सुभाष और जब चाहे 
सचिन और सहवाग बन सकता है |
तो इससे साफ़ जाहिर होता है की सारी
खूबियों का शहंशाह सिर्फ इन्सान ही है |
बस जरुरत है तो इतना की उसका उपयोग 
किस स्थान पर कब और कैसे  किया जाये |
क्युकी दुनिया तो एक रंगमंच है और 
हम सब इस रंगमच के कलाकार हैं  |
बस अपनी - अपनी कला से एक दुसरे को 
मोहित करना हमारा काम है  |
बस थोड़े वक्त  का ही ये खेल होता है |
क्युकी हम तो सितारे हैं उपर से आयें है ,
और वापस सितारों में ही जाके मिलना है |
जिंदगी की  रफ़्तार को न आज तक कोई 
रोक पाया है और न ही रोक सकता है |
सारी सृष्टि की ये सच्चाई है बिना परिवर्तन 
के कुछ भी संभव नहीं |
फिर और किसका इंतजार करना है |
इस जीवन को अपने ही अंदाज़ में 
जीके निकलना  हैं |
हाय तौबा  न करते हुए ख़ुशी - खशी 
आगे की और ही तो बढ़ना  हैं |
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ये संसार प्यारी सी बगिया

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कोंन कहता है की इंसान...
इंसान से प्यार नहीं करता |
प्यार तो बहुत करता है 
पर इज़हार नहीं करता |
हर एक... को तो अपने 
पहलु से बांधे फिरता है |
पर फिर भी उसे कहने से 
हर दम ही वो  डरता है |
यूँ कहो की पुराने को हरदम 
साथ रख कर फिर कुछ 
नए की तलाश में रहता है |
उसका कारवां तो 
यूँ ही चलता रहता है |
तभी तो ता उम्र वो 
परेशान सा ही रहता है |
इस छोटे से दिल में न जाने 
कितनों को वो पन्हा  देता  है |
फिर किसको छोड़ू  किसको रखूं 
इसी में उम्र बिता देता है |
जब वो थक हार के 
सोचने जो लगता  है |
तब तलख  जिंदगी 
आधी ही तो रह जाती है |
यूँ कहो की  जिंदगी उससे 
बहुत दूर निकल  जाती है |
तो फिर कयूँ इस छोटे से दिल में 
सबका  का घर बनाये हम |
एक ही काफी नहीं जो 
सबको यहाँ बसायें हम |
इन्सान का कारवां तो 
हर वक़्त नया गुजरता है |
सबसे हम हंस के मिलें 
इससे भी तो काम चलता है |
ये संसार तो प्यारा सा 
एक बगीचा है |
इसमें रोज़  फूल खिले 
तो ये हरदम महकता है |
यही तो हमारी जिंदगी को 
खूबसूरती से रौशन करता है |
हममें जीने का नया होंसला  
हर वक़्त भरता है |

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समर्पण

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चाँद तारों की बात करते हो 
हवा का  रुख को बदलने की  
बात करते हो 
रोते बच्चों को जो हंसा दो 
तो मैं जानूँ |
मरने - मारने की बात करते हो 
अपनी ताकत पे यूँ इठलाते  हो  
गिरतों को तुम थाम लो 
तो मैं मानूँ |
जिंदगी यूँ तो हर पल बदलती है
अच्छे - बुरे एहसासों से गुजरती है  
किसी को अपना बना लो 
तो में मानूँ |
राह  से रोज़ तुम गुजरते हो 
बड़ी - बड़ी बातों  से दिल को हरते हो 
प्यार के दो बोल बोलके  तुम 
उसके चेहरे में रोनक ला दो 
तो मैं जानूँ |
अपनों के लिए तो हर कोई जीता है 
हर वक़्त दूसरा - दूसरा  कहता है |
दुसरे को भी गले से जो तुम लगा लो 
तो मैं मानूँ |
तू - तू , मैं - मैं तो हर कोई करता है 
खुद को साबित करने के लिए ही लड़ता है 
नफ़रत की इस दीवार को जो तुम ढहा दो 
तो मैं मानूँ |

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मनुष्य कि स्मृति

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मनुष्य कि सोच अदभुत , मगर भ्रामक उपकरण होती है !
हमारे  भीतर रहने वाली स्मृति न तो पत्थर पर उकेरी गई 
कोई पंक्ति है और न ही एसी कि समय गुजरने के साथ 
धुल जाये , लेकिन अक्सर वह बदल जाती है , या कई बाहरी 
आकृति से जुड़ जाने के बाद बढ जाती है !
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क्या ये मेरी खता थी?

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तेरे दामन से जो लिपट गयी चुनरी मेरी
दुनिया ने कहा मेरे चलने में खता थी
हवा ने रूख मोड़ा और उड़ गयी वो
बता तो क्या ये सिर्फ मेरी खता थी?
..
फिसलती राहो से गुजरते गिरी तेरे बाहो में
दुनिया ने कहां मेरी राह चुनने की खता थी
तेरी मासूम सूरत देखी और राह भटक गई
बता तो क्या ये सिर्फ मेरी खता थी?
..
दुनिया समझने मैं चली, खोया दिल तेरे हाथों में
दुनिया ने कहा खरीददार चुनने में खता थी
दिलों का मेला इतना बड़ा भूल हुई चुनने में
बता तो क्या ये सिर्फ मेरी खता थी?
..
ये गया तू मेंरी ख्वाबो की पंखुड़िया बिखराकर
दुनिया कहती है, मेरी खुशबू में कमी थी
हर पुष्प की अभिलाषा है रे भौरे तू
बता तो क्या ये सिर्फ मेरी खता थी?

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मत रो आरुषि

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वेसे ये नई बात नहीं ये तो रोज़ का ही  नज़ारा हैं !
हर किसी अख़बार के  इक  नए  पन्ने मैं ...
आरुशी जेसी मासूम का कोई न कोई हत्यारा है !
पर लगता है आरुशी के साथ मिलकर सभी मासूमों ने
एक बार फिर से इंसाफ को पुकारा है !
क्या छुपा है इन अपलक निहारती आँखों मैं ,
ये कीससे गुहार लगाती है ?
खुद का इंसाफ ये चाहती है ?
या माँ - बाप को बचाना चाहती है ?
उसने तो दुनिया देखि भी नहीं ,
फिर कीससे आस  लगाती है !
जीते जी उसकी किसी ने न सुनी ,
मरकर अब वो किसको अपना बतलाती है !
गुडिया ये रंग बदलती दुनिया है !
इसमें कोई न अपना है !
तू क्यु इक बार मर कर भी ...
एसे मर - मर के जीती है !
यहाँ एहसास के नाम पर कुछ भी नहीं ,
मतलब की दुनिया बस बसती है !
न कोई अपना न ही पराया है
लगता है हाड - मांस की ही बस ये काया है  !
जिसमें  प्यार शब्द का एहसास नहीं !
किसी के सवाल  का कोई  जवाब नहीं !
तू अब भी परेशान सी रहती होगी  ?
लगता है  इंसाफ के लिए रूह तडपती होगी !
अरे तेरी दुनिया इससे सुन्दर होगी ?
मत रो तू एसे अपनों को !
तेरी गुहार हर मुमकिन पूरी होगी !
तेरे साथ सारा ये जमाना है !
कोई सुने न सुने सारी दुनिया की ...जुबान मै
 सिर्फ और सिर्फ तेरा ही फसाना है !
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इंतजार

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मेरे इंतजार मै तू जो दो पल ठहर जाती !
तेरे गेसूं तले  फिर ये  शाम हो जाती !

तेरे दीदार पे मै ये जन्नत बिछा  देता !
मेरी ये जिंदगानी  खुशगवार हो जाती ! 
तेरी  नशीली आँखों का जो मै जाम पी लेता !
मयखाने  का तो रास्ता ही मै भुला देता  !
तेरी आह्ट  से जो तेरा पता मिल जाता !
तेरे क़दमों पे ही मै सारा जहाँ  पा  लेता  !
तेरे अश्कों को अपनी हथेलियों मैं लेके ,
तेरे हर गम को प्यार का मरहम देता !
तेरी हर ख़ुशी मै हरदम तुझ संग झूमता मैं 
अपने गम को शामिल उसमे हरगिज न करता !
जो तू कभी जान जाती मेरे इस प्यार को ,
तो तेरे सीने मैं सर रखकर  मैं बस रो देता !

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सावन की फुहार

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नाचत - गावत आई बहार 
क्यारी - क्यारी फूलों सी महकी 
चिड़ियाँ नाचे दे - दे ताल 
नाचत -  गावत आई बहार !
भवरों की गुंजन भी लागे 
जेसे गाए गीत मल्हार 
रंग बिरंगी तितली देखो 
पंख फैलती बारम्बार 
नाचत - गावत आई बहार !
मोर - मोरनी  भी एसे  नाचे  
जेसे हो प्रणय को तैयार 
थिरक - थिरक अब हर कोई देता 
अपने होने का  आगाज़ 
नाचत गावत आई बहार !
हर कोई अपने घर से निकला 
करने अपना साज़ - श्रृंगार 
सबका मन पंछी बन डोला 
मस्त गगन मै फिर एक बार 
नाचत -  गावत आई बहार !
चिड़िया असमान मै नाचे 
तितली गाए गीत मल्हार 
मै तो इक टक एसे देखूं 
जेसे मैं हूँ   कोई चित्रकार 
नाचत -  गावत आई बहार !

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