बीते लम्हों की ही तो ये बात है !
फुर्सत के पलों की ही तो ये रात है !
जब चाँद के पहलु मै हम बेठे रहते थे !
उसे निहारते -२ ही न हम थकते थे !
कितनी हसीन लगती थी वो चांदनी रात !
जब खामोश रात मै उसकी चांदनी बिखरती थी !
हर तरफ नूर ही नूर बरसती थी !
खामोश तन्हाई भी जेसे हसीं लगती थी !
जब कोई न था पर चाँद का दामन हमारे पास था !
वो तो जेसे हरदम हमारे साथ था !
आज तो लगता है जेसे मुदते ही बीत गई!
उसके दीदार को आँखे जेसे तरस गई !
आज कल चाँद के लिए फुर्सत किसके पास है !
ये तो सब वक़्त वक़्त की बात है !
कल तक हम उसके पहलु से बँधे फिरते थे !
सुना है आज वो हमे अपनी आगोश मै लेने को बेकरार है !
बहुत खूब कहा है आपने । मुबारक हो ।