डॉ. भीमराव अम्बेडकर, भारतीय संविधान के निर्माता और समाज सुधारक, ने 14 अक्टूबर 1956 को अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म में दीक्षा ली। इसके साथ ही उन्होंने 22 प्रतिज्ञाओं की घोषणा की, जिनका उद्देश्य जातिवादी भेदभाव और छुआछूत की जड़ों को समाप्त करना था। अम्बेडकर का जीवन संघर्ष और समर्पण का प्रतीक था, जिसमें उन्होंने जातिगत अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष किया और समानता व न्याय की स्थापना के लिए काम किया।
अम्बेडकर और 22 प्रतिज्ञाएँ:
1. 22 प्रतिज्ञाओं की
पृष्ठभूमि
डॉ. अम्बेडकर की 22 प्रतिज्ञाएँ उस
समय की धार्मिक मान्यताओं का विरोध करती थीं, जो जातिवाद को
बढ़ावा देती थीं। उन्होंने हिन्दू धर्म के उन पहलुओं की आलोचना की, जो दलित समुदाय
को दबाने और भेदभाव करने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे। उनका मानना था कि ऐसी
धार्मिक मान्यताएँ और अनुष्ठान, जो जातिवाद और छुआछूत को समर्थन
देती थीं, दलित समाज के आत्म-सम्मान के खिलाफ थीं। अम्बेडकर की प्रतिज्ञाएँ इस बात की
पुष्टि करती हैं कि उन्होंने जीवनभर उस धार्मिक और सामाजिक व्यवस्था का विरोध किया
जिसने दलितों के अधिकारों का हनन किया।
2. हिन्दू
देवी-देवताओं का विरोध और उसकी आलोचना
अम्बेडकर ने अपने अनुयायियों से
ऐसे धार्मिक अनुष्ठानों से दूर रहने का आह्वान किया, जो उन्हें नीचा
दिखाते थे। उनकी प्रतिज्ञाओं में ब्राह्मणवादी धार्मिक व्यवस्थाओं की आलोचना की गई, लेकिन इसे
देवी-देवताओं के प्रति व्यक्तिगत विरोध के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। अम्बेडकर
का उद्देश्य धर्म की आलोचना करना नहीं था, बल्कि उन
मान्यताओं और रीति-रिवाजों का विरोध करना था, जो दलितों के
लिए अपमानजनक माने जाते थे। उनके अनुसार, दलित समाज को उस
धार्मिक ढांचे से बाहर निकलने की जरूरत थी, जो उनके लिए
अपमान और दमन का प्रतीक था।
3. ब्राह्मण विरोध
और व्यापक हिन्दू समाज
यह कहना कि देवी-देवता केवल
ब्राह्मणों के हैं, गलत होगा। हिन्दू धर्म में कई जातियाँ और समुदाय देवी-देवताओं की पूजा करते
हैं। अम्बेडकर का मुख्य विरोध ब्राह्मणवादी व्यवस्था के उन पहलुओं के प्रति था, जो जातिवाद को
बढ़ावा देते थे। उन्होंने जातिगत भेदभाव और सामाजिक असमानता के खिलाफ संघर्ष किया, लेकिन इसका अर्थ
यह नहीं है कि उन्होंने सभी हिन्दुओं की धार्मिक मान्यताओं का अपमान किया। उनका
विरोध केवल उस सामाजिक ढांचे से था, जो दलितों के
लिए भेदभाव और असमानता का कारण बनता था।
4. धार्मिक टकराव
और जिम्मेदारी
अम्बेडकर की प्रतिज्ञाओं का प्रभाव
समाज के एक हिस्से पर गहरा पड़ा और उनके अनुयायियों ने बौद्ध धर्म को अपनाया। उनके
विचारों का उद्देश्य समता, समानता और आत्म-सम्मान की स्थापना करना था। अगर इन प्रतिज्ञाओं के कारण
सामाजिक टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है, तो इसका कारण
केवल अम्बेडकर की प्रतिज्ञाएँ नहीं हैं। इसके पीछे वह ऐतिहासिक सामाजिक, आर्थिक, और धार्मिक
पृष्ठभूमि भी है, जिसने दलितों के प्रति भेदभाव की प्रथाओं को बनाए रखा।
वर्तमान
परिप्रेक्ष्य में प्रतिज्ञाओं का प्रभाव
1. सामाजिक समरसता
पर प्रभाव
डॉ. अम्बेडकर की 22 प्रतिज्ञाओं का
उद्देश्य दलित समाज को धार्मिक और सामाजिक बेड़ियों से मुक्त करना था। आज, जब समाज की
संरचना में बदलाव आ चुका है, तो इन प्रतिज्ञाओं को लेकर विभिन्न
समुदायों में मतभेद उभर सकते हैं। इससे सामाजिक समरसता पर आंशिक प्रभाव पड़ सकता
है, क्योंकि ये प्रतिज्ञाएँ उन पुरानी सामाजिक असमानताओं को पुनर्जीवित कर सकती
हैं जिन्हें समाज पीछे छोड़ना चाहता है।
2. सामाजिक एकता पर
प्रभाव
वर्तमान समय में, जब समाज में
धर्म और जाति के आधार पर विभाजन की जगह एकता और आपसी सम्मान की आवश्यकता है, इन प्रतिज्ञाओं
के नकारात्मक पहलू भी सामने आ सकते हैं। कई समुदायों के बीच भावनात्मक दरार
उत्पन्न हो सकती है। हालांकि, अगर इन प्रतिज्ञाओं को ऐतिहासिक
संदर्भ में देखा जाए और समझा जाए कि इन्हें किन परिस्थितियों में लागू किया गया था, तो यह समाज को
एकजुट रखने में सहायक हो सकता है।
3. सामाजिक अखंडता
पर प्रभाव
डॉ. अम्बेडकर की 22 प्रतिज्ञाएँ दलितों के लिए आत्म-सम्मान, समानता और अधिकार की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास थीं। उनका उद्देश्य एक ऐसा सामाजिक ढांचा बनाना था, जिसमें हर व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान मिले। हालाँकि, वर्तमान समय में इन प्रतिज्ञाओं को सामाजिक टकराव का कारण न बनने देने के लिए संवाद, समन्वय और सामंजस्य की जरूरत है। समाज में एकता और अखंडता बनाए रखने के लिए, हमें अतीत की कठिनाइयों से सीखते हुए आगे बढ़ना चाहिए और हर समुदाय की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।
संदर्भ:
- डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के जीवन और संघर्ष से संबंधित
शोध लेख एवं उनकी आत्मकथा।
- भारतीय इतिहास के विभिन्न संदर्भ, जो जातिगत
भेदभाव और सामाजिक सुधार के बारे में जानकारी देते हैं।
- बौद्ध धर्म में डॉ. अम्बेडकर के योगदान और उनकी 22 प्रतिज्ञाओं
पर आधारित शोध पत्र।
यह लेख डॉ. अम्बेडकर के विचारों और
उनके ऐतिहासिक योगदान को समझने में सहायक हो सकता है, जिससे हम एक
समावेशी समाज की दिशा में आगे बढ़ सकें।
कृष्णा बारस्कर (अधिवक्ता) बैतूल
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