इतिहास केवल अतीत की घटनाओं का संकलन नहीं होता — यह समाज की आत्मा की स्मृति है। विगत कुछ समय से भारत के स्कूली पाठ्यक्रमों में खासकर एनसीईआरटी की पुस्तकों में, मध्यकालीन मुस्लिम शासकों के कृत्यों को लेकर जो बदलाव हुए हैं, वे एक महत्वपूर्ण बहस का विषय बन चुके हैं। क्या मंदिर विध्वंस, जनसंहार, और सांस्कृतिक आघात जैसे क्रत्य बच्चों को पढ़ाए जाने चाहिए? क्या यह "हिंदू भावनाओं को भड़काने" जैसा है या "ऐतिहासिक सच का सामना करना"? यह लेख इन्हीं प्रश्नों का उत्तर देता है — तथ्य, साक्ष्य, और ऐतिहासिक दृष्टिकोण के साथ।
1. क्या इतिहास में क्रूरता को छिपाना चाहिए?
इतिहास में जो हुआ, वह हुआ — हम उसे बदल नहीं सकते।
भारत के मध्यकाल में महमूद ग़ज़नवी (1025), मोहम्मद ग़ोरी (1191), और खिलजियों, तुग़लकों, मुग़लों द्वारा असंख्य मंदिरों का विध्वंस, हिंदू राजाओं का कत्लेआम, महिलाओं और बच्चों को गुलाम बनाना, धार्मिक पहचान को मिटाने का प्रयास, जैसे कई प्रमाणित तथ्य हैं।
सोमनाथ मंदिर, काशी विश्वनाथ, मथुरा के केशवदेव मंदिर, विजयनगर के मंदिर, जैन और सिख तीर्थस्थलों पर हमले इतिहास की गोपनीयता में नहीं, मुग़ल दरबारों के फ़रमानों, विदेशी यात्रियों की रिपोर्टों, और लोक स्मृतियों में सुरक्षित हैं।
2. क्या ये आक्रमण धर्म के नाम पर थे?
महमूद ग़ज़नवी ने अपने हमले को ‘जिहाद’ कहा।
औरंगज़ेब ने काशी और मथुरा के मंदिर तोड़कर वहाँ मस्जिदें बनाईं।
मुग़ल फ़रमान स्पष्ट रूप से कहते हैं – “मूर्तिपूजा को नष्ट करना हमारा कर्तव्य है।”
ये घटनाएँ केवल सत्ता संघर्ष नहीं थीं — ये संस्कृति और धर्म पर सुनियोजित हमले थे।
और यह बताना ज़रूरी है ताकि अगली पीढ़ी को पता चले कि किस तरह संस्कृति की रक्षा की जाती है।
3. क्या सब मुस्लिम शासक क्रूर थे?
यहाँ एक विवेकपूर्ण संतुलन आवश्यक है।
अकबर ने अपने जीवन के शुरुआती दौर में चित्तौड़ पर हमला कर 30,000 नागरिकों का वध कराया — यह तथ्य अकबरनामा और एनसीईआरटी की नई पुस्तक में भी स्वीकार किया गया है।
परंतु —
बाद के वर्षों में अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता, जज़िया कर की समाप्ति, और राजपूतों से मैत्री की नीति अपनाई।
तानसेन, रहीम, अबुल फ़ज़ल जैसे विद्वान उसके दरबार में थे।
यह पढ़ाना आवश्यक है कि एक ही शासक में क्रूरता और सहिष्णुता, दोनों पहलू हो सकते हैं।
परंतु केवल एक पक्षीय "गंगा-जमुनी तहज़ीब" दिखाकर क्रूरता को सफेद नहीं किया जा सकता।
4. मुग़ल भारत के नहीं थे — पर क्या बन गए थे?
बाबर और हुमायूं मध्य एशिया से आए थे – यह सत्य है।
परंतु अकबर से लेकर बहादुर शाह ज़फ़र तक सभी मुग़ल शासक भारत में ही जन्मे, पले-बढ़े और यहीं मरे।
तो क्या वे “भारतीय” थे?
भारत की आत्मा से जुड़ना और भारतीय संस्कृति को आत्मसात करना, यह सच्चा भारतीयत्व है —
परंतु मुग़लों का बहुसंख्यक हिस्सा कभी हिंदू धर्म, परंपरा, पर्व, मंदिर या सनातन संस्कृति का संवाहक नहीं बना।
इसलिए सत्ता तो उन्होंने भारत पर की, पर आत्मा से वे भारतीय नहीं हुए।
5. क्या यह "इतिहास बदलना" है?
आज जब एनसीईआरटी की नई पुस्तक में इन तथ्यों को लाया गया, तो कई तथाकथित इतिहासकारों ने आरोप लगाया —
"सरकार इतिहास को तोड़-मरोड़कर, पूर्वाग्रह के साथ, हिन्दू मानसिकता को तुष्ट करने के लिए लिखवा रही है।"
लेकिन यह भूल जाते हैं कि इतिहास तथ्यों से चलता है, कल्पनाओं से नहीं।
यदि पहले के पाठ्यक्रमों में मंदिर विध्वंस या लूट का कोई ज़िक्र नहीं था, तो यह विकृति थी, संशोधन नहीं।
6. इतिहास पढ़ाया जाए — लेकिन क्यों?
ना तो नफ़रत फैलाने के लिए,
ना ही हीन भावना से ग्रसित करने के लिए,
बल्कि सांस्कृतिक चेतना और आत्म-सम्मान जगाने के लिए।
❝ जो समाज अपने अतीत के अत्याचार भूल जाता है, वह भविष्य में फिर गुलाम बनता है ❞
– स्वामी विवेकानंद
7. क्या मध्यकाल केवल “अंधकारमय युग” था?
यह कहना भी आधे सच का प्रचार होगा।
उसी युग में:
रामचरितमानस की रचना हुई,
भक्ति आंदोलन अपने चरम पर था,
संत कबीर, गुरु नानक, तुलसीदास, रहीम, जायसी, सूरदास जैसे संत–कवियों ने भारत की आत्मा को शब्द दिए।
इसलिए इतिहासकार इरफ़ान हबीब की बात आंशिक रूप से सही है —
"मध्यकाल में केवल अंधकार नहीं था, संस्कृति की लौ भी जल रही थी।"
निष्कर्ष: क्या पढ़ाया जाए?
मुग़लों द्वारा मंदिर तोड़ने की सच्चाई
उनके द्वारा किए गए जनसंहार
सनातन संस्कृति पर हमले
हिंदू प्रतिरोध की गाथाएँ (महाराणा प्रताप, शिवाजी, गुरु तेग बहादुर)
साथ ही सांस्कृतिक उपलब्धियाँ भी — तुलसी, कबीर, रहीम, भक्ति आंदोलन
इतिहास का उद्देश्य होना चाहिए – "सच दिखाना, संतुलन के साथ।"
अंतत:
भारत का इतिहास गर्व और संघर्ष का अद्वितीय संगम है।
मुग़ल, खिलजी, ग़ोरी, ग़ज़नवी जैसे आक्रांताओं ने भारत के मंदिरों को तोड़ा, सभ्यता को लूटा, धर्मांतरण कराया, परंतु भारत न मिटा, सनातन न रुका।
आज ज़रूरत है इतिहास को धर्म-राष्ट्र की चेतना से समझने की, ताकि अगली पीढ़ी इतिहास को सिर्फ "तथ्य" नहीं, चेतावनी समझे।
📝 लेखक: कृष्णराव बारस्कर, अधिवक्ता, बैतूल।
संदर्भ:
एनसीईआरटी कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान (2025 संस्करण)
बाबरनामा, अकबरनामा, तुज़ुक-ए-जहांगीरी
द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस, आईएएनएस
प्रो. इरफ़ान हबीब, माइकल डैनिनो, पार्वती शर्मा की टिप्पणियाँ
स्मृति ग्रंथ: भारत के मंदिर और उनका विध्वंस – एस. गोपाल, वॉल्टर फिशर
Post a Comment