दक्षिण एशिया इस समय एक बारीक तलवार की नोक पर खड़ा है। दिल्ली में लाल किले के पास हुआ
कायराना धमाका अब तक भारत सरकार द्वारा आतंकी कार्रवाई घोषित नहीं किया गया है। पुलवामा के बाद शुरू हुआ ऑपरेशन सिंदूर अभी जारी है—और सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि सीमा पार की सबसे छोटी आतंकवादी गतिविधि भी गंभीर प्रतिक्रिया को जन्म दे सकती है। ऐसे में पूरे क्षेत्र की शांति अब इस बात पर निर्भर है कि भारत इस हमले को किस श्रेणी में रखता है। यही फैसला आने वाले दिनों की कूटनीतिक और सुरक्षा दिशा तय करेगा।
दक्षिण एशिया इस समय एक बारीक तलवार की नोक पर खड़ा है। दिल्ली में लाल किले के पास हुआ
कायराना धमाका अब तक भारत सरकार द्वारा आतंकी कार्रवाई घोषित नहीं किया गया है। पुलवामा के बाद शुरू हुआ ऑपरेशन सिंदूर अभी जारी है—और सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि सीमा पार की सबसे छोटी आतंकवादी गतिविधि भी गंभीर प्रतिक्रिया को जन्म दे सकती है। ऐसे में पूरे क्षेत्र की शांति अब इस बात पर निर्भर है कि भारत इस हमले को किस श्रेणी में रखता है। यही फैसला आने वाले दिनों की कूटनीतिक और सुरक्षा दिशा तय करेगा।
राजनीतिक-रणनीतिक निहितार्थ
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घोषणा-शक्ति का महत्व: किसी भी राज्य की प्रतिक्रिया-नीति में ‘घोषणा’ का राजनीतिक और रणनीतिक महत्व बहुत अधिक होता है। यदि दिल्ली इसे आतंकी हमले के रूप में औपचारिक रूप से घोषित करती है तो अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर कार्रवाई-विकल्प (कूटनीतिक, खुफिया-साझेदारी, सर्जिकल प्रतिआक्रमण आदि) पर दबाव बढ़ सकता है। यदि घोषणा टाली गयी या अस्पष्ट रखी गयी, तो विरोधी पक्ष के लिए समझने-समझाने का अवसर बनेगा — और अनिवार्य नहीं कि वह स्थिति को शांतिपूर्वक ही ग्रहण करे।
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गलत-निर्धारण (Misattribution) का जोखिम: जल्दी में गलत निष्कर्ष निकालकर आरोप लगाना भी खतरनाक है — पर धीमी, अस्पष्ट प्रतिक्रिया भी उसी तरह परिदृश्य को उलझा सकती है जहाँ प्रतिकूल actor गलत-फहमी से तेज़ी से कदम उठाएँ। इसलिए पारदर्शिता, ठोस_forensics_, और सामूहिक खुफिया-साझेदारी (दोस्त देशों के साथ) आवश्यक हैं।
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अंदरूनी स्थिरता बनाम बाहरी कार्रवाई: ऑपरेशन-सिंदूर जैसे कदम पहले ही क्षेत्र में तनाव पैदा कर चुके हैं; ऐसे समय में भारत-सरकार की प्रतिक्रिया दो ध्रुवीय दबावों के बीच फँसती दिखती है — एक ओर आंतरिक जनता और राजनीतिक मांग कि ‘कठोर कार्रवाई’ हो, दूसरी ओर इंटेलिजेंस-रिस्क और युद्धविस्तार की आशंका। यह संतुलन बहुत नाजुक है और एक तर्कहीन बयान या तीव्र सैन्य कदम दक्षिण-एशिया की शांति को और पीछे धकेल सकता है।
सिफारिशें (नीतिगत और प्रशासनिक)
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त्वरित, सार्वजनिक और तथ्यप्रधान संवाद: सरकार और पुलिस-एजेंसियों को दैनिक स्थिति-रिपोर्ट देनी चाहिए — क्या मिला, कौन पकड़ा गया, किस प्रकार की सामग्री पायी गयी — ताकि अफवाह और अटकलों से जनता की आशंकाएँ नियंत्रित हों।
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खुफिया साझेदारी तेज करें: पड़ोसी देशों तथा मित्र देशों के साथ सूचनाओं का आदान-प्रदान बढ़ाएँ; सीमा पार नेटवर्क की सटीकता बढ़ाएँ।
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सार्वजनिक-सुरक्षा संचालन: दिल्ली जैसे उच्च-प्रोफ़ाइल स्मारकों के आसपास वाहन-प्रवेश व पार्किंग-नीतियों, मेट्रो निकासी-रूट और आपातकालीन प्रतिक्रिया-प्रशिक्षण पर पुनर्विचार ज़रूरी है।
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कूटनीतिक संयम, परन्तु निर्णायक: अगर फोरेंसिक व खुफिया प्रमाण सीमा पार कृत्यों की ओर इशारा करें, तो सरकार के पास निर्णायक विकल्प होने चाहिए — पर निर्णय में तर्कसंगतता और अन्तरराष्ट्रीय नियमों का पालन अनिवार्य है।


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