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वे भारतीय अपराध जहाँ पीड़ित और आरोपी दोनों दंडनीय: दायित्व, नैतिकता और न्यायिक संतुलन

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दोहरी दायित्व की अवधारणा और संवैधानिक संतुलन

भारतीय आपराधिक न्याय व्यवस्था आज केवल “अपराधी को दंड” भर की व्यवस्था नहीं रह गई। यह समाज में व्याप्त उन संरचनात्मक विकृतियों को भी नियंत्रित करना चाहती है जहाँ अपराध के दोनों पक्ष अपराध को जन्म देते और पोषित करते हैं। इस व्यवस्था का उद्देश्य अन्याय को उसके स्रोत सहित खत्म करना है।

कई अपराधों में तथाकथित पीड़ित भी अपराध के सुविधादाता, सहभागी या लाभार्थी के रूप में सामने आता है। दहेज देना–लेना, रिश्वत देना–लेना, वोट खरीद–बेच जैसे अपराध इसी श्रेणी में आते हैं। यही अवधारणा आधुनिक न्यायशास्त्र में Shared Criminal Responsibility के रूप में देखी जाती है।

संविधान के Article 14, 20(3) और 21 में इस जिम्मेदारी को न्याय–संतुलन के साथ समझने की अपेक्षा की गई है। न्यायपालिका का भारी दायित्व है कि पीड़ित और आरोपी के बीच की वास्तविक भूमिका को बिना पूर्वाग्रह के समझा जाए।


नया विधिक ढांचा: IPC → BNS, CrPC → BNSS, Evidence Act → BSA

2023 के बाद भारत की दंड सामग्री और प्रक्रिया में व्यापक सुधार हुए।
इन सुधारों ने Shared Liability की अवधारणा को कानून में और स्पष्ट व कठोर बनाया है।

पुराना कानूननया कानूनमुख्य लक्ष्य
IPC, 1860Bharatiya Nyaya Sanhita (BNS), 2023आधुनिक अपराध संरचना
CrPC, 1973Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita (BNSS), 2023जांच–प्रक्रिया सरल व समयबद्ध
Evidence Act, 1872Bharatiya Sakshya Adhiniyam (BSA), 2023इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों का विस्तार

Reverse Burden, Financial Trails, Digital Proof जैसे सिद्धांत अब Shared Crime की सच्चाई सामने लाते हैं।


वे प्रमुख अपराध जहाँ दोनों पक्ष दंडनीय

अपराध             कानून/धाराएँ                दंडनीय पक्ष
दहेज             §3, §4 Dowry Act                देने–लेने वाले दोनों
भ्रष्टाचार             PC Act §7, §8, §12                Bribe giver–receiver
चुनाव अपराध             BNS §169–172                वोट खरीदने–बेचने वाले
मानव तस्करी             BNS §143–148                खरीद–बेच–सुविधा प्रदाता
NDPS             Possession & Trade                उपयोगकर्ता भी अपराधी
Arms Act             Illegal trade                Buyer–Seller
साइबर धोखाधड़ी             IT Act §66D                डेटा चोर और उपयोगकर्ता
वित्तीय अपराध             PMLA/GST §132                False ITC लेने–देने दोनों
वेश्यावृत्ति             ITPA §5, §7                ग्राहक, दलाल, संचालक

न्यायपालिका के मानदंड
न्यायालय यह जांच करता है कि अपराध में
• स्वैच्छिकता थी
• या दबाव, शोषण, धमकी

औचित्य की यह जांच Shared Liability को नैतिक और न्यायपूर्ण बनाती है।


कानूनी चुनौतियाँ

  1. पीड़ित को दंड देना कई बार सामाजिक दृष्टि से असहज

  2. FIR में दोनों पक्षों को शामिल करने की जटिलता

  3. सज़ा निर्धारण में विवेक

  4. गलत शिकायतों का संभावित दुरुपयोग

न्यायालय अक्सर यह सवाल उठाता है कि पीड़ित की मजबूरी कितनी वास्तविक है और उसका Criminal Intent क्या था।


Complaint Delay Jurisprudence

Shared Liability अपराधों में विलंबित शिकायत न्यायपालिका का विशेष परीक्षण विषय है।

महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट निर्देश
Lalita Kumari v State of UP: FIR अनिवार्य, पर जांच विवेकसंगत
State of HP v Gian Chand (2001): Delay fatal नहीं पर विश्वसनीय स्पष्टीकरण आवश्यक
Rai Sandeep v NCT Delhi (2012): Sterling Witness theory

वित्तीय अपराधों में देरी संदेह को और बढ़ाती है।
यौन अपराधों में देरी पीड़ित मनोविज्ञान के संदर्भ में स्वीकार्य।


साक्ष्य कानून का दृष्टिकोण: (BSA 2023 Updates)

Shared Liability अपराधों में सबसे मजबूत साक्ष्य
• बैंक लेनदेन
• डिजिटल चैट
• वीडियो ऑडियो रिकॉर्डिंग
• Call Detail Records

NDPS और PMLA जैसे मामलों में Reverse Burden यह सुनिश्चित करता है कि अपराध का लाभ लेने वाला छूट न जाए।


नीति सुझाव

  1. दहेज व रिश्वत मामलों में वित्तीय ऑडिट अनिवार्य

  2. Complaint Delay Test को मानकीकृत किया जाए

  3. दबाव में अपराध करने वालों को विशेष सुरक्षा

  4. पीड़ित-आरोपी Overlap वाले सभी अपराधों को Gender-Neutral बनाया जाए

यह सुधार अपराध की जड़ पर प्रहार करेंगे।

Shared Criminal Responsibility वह सिद्धांत है जो यह स्वीकार करता है कि

  1. अपराध के दोनों पक्ष अपराध को जन्म देने के लिए समान रूप से जिम्मेदार हो सकते हैं
  2. न्याय तभी होगा जब पूरी अपराध-श्रृंखला को दंड मिले
  3. संविधान का संतुलन पीड़ित व आरोपी दोनों की वास्तविक भूमिका को न्यायपूर्ण ढंग से पहचाने

भारत की नई विधिक प्रणाली संवैधानिक नैतिकता और अपराध प्रतिरोध दोनों के बीच संतुलन बनाकर आगे बढ़ रही है।


लेखक

✍️ अधिवक्ता कृष्णा बारस्कर
(विधिक विश्लेषक एवं स्तंभकार)

 
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